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________________ ते आलो संका कंखा वितिगिच्छा परपासंड-पसंसा परपासंड संधवो प्राणातिपात मृषावाद अदत्तादान मैथुन परिग्रह क्रोध मान माया लोभ राग द्वेष - कलह अभ्याख्यान पैशुन्य परपरिवाद रति -अरति उनकी मैं आलोचना करता है। श्री जिन वचन में शंका की हो। परदर्शन की आकांक्षा की हो। धर्म के फल में सन्देह किया हो। पर पाखण्डी की प्रशंसा की हो। पर पाखण्डी का परिचय किया हो। अठारह पाप स्थान का पाठ जीव की हिंसा करना । झूठ बोलना। चोरी करना । कुशील का सेवन करना । मूर्च्छा, धनादि द्रव्य पर ममत्व रखना (धन धान्यादि का आवश्यकता से अधिक संग्रह करना) । रोष, गुस्सा । अहंकार घमण्ड | छल-कपट । लालच - तृष्णा । मोह, आसक्ति । वैर-विरोध | क्लेश-झगड़ा। झूठा कलंक लगाना । चुगली करना । दूसरों की निन्दा करना । अनुकूल विषयों में आनन्द, प्रतिकूल विषयों में खेद । {62} श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र
SR No.034373
Book TitleShravak Samayik Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshwa Mehta
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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