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________________ जव नियमं पज्जुवासामि दुविहंतिवि न करेमि न कारवेमि मणसा वयसा कायसा तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पार्ण वोसिरामि नमोणं अरिहंताणं भगवंताणं आगराणं तित्थयराणं सयं संबुद्धाणं पुरिसुत्तमाणं पुरिससीहाणं जब तक सामायिक के नियम का सेवन करूँ तब तक । दो करण, तीन योग से । पुरिसवरपुंडरीयाणं पुरिसवरगंधहत्थीणं (पापकर्म) मैं स्वयं नहीं करूँगा । (व) दूसरों से नहीं करवाऊँगा । मन, वचन और काया से (और) शक्रस्तव (नमोत्थु णं) सूत्र नमस्कार हो । 1 अरिहंत भगवन्तों को। (जो) धर्म की आदि करने वाले । हे भगवन् ! उन पूर्वकृत पापों का प्रतिक्रमण करता हूँ अर्थात् पापों से पीछे हटता हूँ। आत्म साक्षी से निंदा करता हूँ । गुरु साक्षी से गर्हा (निंदा) करता हूँ । पाप युक्त आत्मा को छोड़ता हूँ, अर्थात् आत्मा को पाप से अलग करता हूँ। धर्मतीर्थ (चतुर्विध संघ) की स्थापना करने वाले। अपने आप बोध को प्राप्त। पुरुषों में उत्तम । पुरुषों में सिंह के समान (पराक्रमी ) । पुरुषों में श्रेष्ठ पुंडरीक कमल के समान । पुरुषों में श्रेष्ठ गंधहस्ती के समान । {53} श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र
SR No.034373
Book TitleShravak Samayik Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshwa Mehta
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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