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________________ 44. आयरिय उवज्झाए का पाठ आयरिय-उवज्झाए, सीसे साहम्मिए कुल-गणे य। जे मे केइ कसाया, सव्वे तिविहेणं खामेमि ।।1।। सव्वस्स समण-संघस्स, भगवओ अंजलिं करिअसीसे। सव्वं खमावइत्ता, खमामि सव्वस्स अहयं पि ।।2।। सव्वस्स जीव-रासिस्स, भावओ धम्मं निहिय नियचित्तो। सव्वं खमावइत्ता, खमामि सव्वस्स अहयं पि ।।3।। 45. अढ़ाईद्वीप पन्द्रह क्षेत्र का पाठ ऐसे अढ़ाई द्वीप पन्द्रह क्षेत्र में तथा बाहर, श्रावक-श्राविका दान देवें, शील पाले, तपस्या करे, शुद्ध भावना भावे, संवर करे, सामायिक करे, पौषध करे, प्रतिक्रमण करे, तीन मनोरथ चिन्तवे, चौदह नियम चितारे, जीवादि नव पदार्थ जाने, ऐसे श्रावक के इक्कीस गुण करके युक्त, एक व्रतधारी जाव बारह व्रतधारी, भगवन्त की आज्ञा में विचरें ऐसे बड़ों से हाथ जोड़, पैर पड़कर, क्षमा माँगता हूँ। आप क्षमा करें, आप क्षमा करने योग्य हैं और शेष सभी को खमाता हूँ। 46. चौरासी लाख जीव योनि का पाठ सात लाख पृथ्वी काय, सात लाख अप्काय, सात लाख तेऊ काय, सात लाख वायु काय, दस लाख प्रत्येक वनस्पति काय, चौदह लाख साधारण वनस्पति काय, दो लाख बेइन्द्रिय, दो लाख तेइन्द्रिय, दो लाख चउरिन्द्रिय, चार लाख देवता, चार लाख नारकी, चार लाख तिर्यंच पंचेन्द्रिय, चौदह लाख मनुष्य, ऐसे चार गति चौबीस दण्डक, चौरासी लाख जीव योनि में सूक्ष्म, बादर, पर्याप्त, अपर्याप्त जीवों में से किसी जीव का हालते, चालते, उठते, बैठते, {40} श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र
SR No.034373
Book TitleShravak Samayik Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshwa Mehta
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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