SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्र. 40. उत्तर प्र. 41. उत्तर जीव अपने कर्मानुसार मरते और दु:ख पाते हैं फिर मारने वाले को पाप क्यों लगता है? मारने वाले को मारने की दुष्ट भावना और मारने की दुष्ट प्रवृत्ति से पाप लगता है। श्रावक त्रस जीवों की हिंसा का त्याग क्यों करता है? त्रस की हिंसा से पाप अधिक क्यों होता है? त्रस की हिंसा से पाप अधिक होता है, क्योंकि त्रस जीवों में जीवत्व प्रत्यक्ष है तथा वे मारने पर बचने का प्रयास करते हैं। ऐसी दशा में जीवत्व प्रत्यक्ष होते हुए बलात् मारने से क्रूरता अधिक आती है। स्थावर जीवों को जितने पुण्य से स्पर्शनेन्द्रिय बल प्राण आदि मिलते हैं, उससे भी कहीं अधिक पुण्य कमाने पर एक त्रस जीव को एक जिह्वा-वचन आदि प्राण मिलते हैं। उन अनन्त पुण्य से प्राप्त प्राणों का वियोग होता है, इसलिए त्रस जीवों की हिंसा से पाप भी अधिक होता है। अहिंसा अणुव्रत का पालन कितने करण व योग से होता है? यद्यपि अहिंसा अणुव्रत का नियम श्रावक दो करण व तीन योग से लेता है पर इसका तीन करण, तीन योग से पालन का विवेक रखना चाहिए अर्थात् कोई निरपराध त्रस जीव को संकल्पपूर्वक मारे तो उसका मन-वचन-काया से अनुमोदन नहीं करना चाहिए। इसी प्रकार अन्य व्रतों को भी तीन करण तीन योग से पालन करने का लक्ष्य रखना चाहिए। अतिभार किसे कहते हैं? {112} श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र प्र. 42. उत्तर प्र. 43.
SR No.034373
Book TitleShravak Samayik Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshwa Mehta
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy