SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लाख वर्ष पर्यन्त प्रतिदिन कोई दान दे और दूसरा एक सामायिक कर ले तो इतना सुवर्ण दान देने वाले का पुण्य एक सामायिक के बराबर नहीं हो सकता। क्योंकि दान से पुण्य की वृद्धि होती है और पुण्य की वृद्धि से सुख-सम्पदा की प्राप्ति होती है, किंतु सामायिक भवभ्रमण से छुड़ाकर मोक्ष का अनंत सुख प्राप्त कराने वाली है। प्र. 38. सामायिक व्रत कितने काल, कितने करण और कितने योग से किया जाता है? उत्तर सामायिक व्रत एक मुहूर्त यानी 48 मिनट के लिए, 2 करण (पाप स्वयं नहीं करना और दूसरे से नहीं कराना) और 3 योग (मन, वचन और काया) से किया जाता है। प्र. 39. 'नमोत्थु णं' पाठ का क्या प्रयोजन है? उत्तर इस पाठ के द्वारा सिद्ध और अरिहन्त देवों के अनेक गुणों का भाव पूर्वक वर्णन करते हुए उनकी स्तुति की जाती है तथा उनके गुण हमारी आत्मा में भी प्रकट करना, मुख्य प्रयोजन है। प्र. 40. 'नमोत्थु णं' पाठ का दूसरा नाम क्या है? उत्तर इस पाठ को 'शक्रस्तव' पाठ भी कहते हैं, क्योंकि प्रथम देवलोक के इन्द्र-शक्रेन्द्र भी तीर्थङ्करों-अरिहन्तों की इसी पाठ से स्तुति करते हैं। इसका एक और नाम 'प्रणिपात सूत्र' भी है। प्रणिपात का अर्थ-अत्यन्त विनम्रता एवं बहुमानपूर्वक अरिहन्त-सिद्ध की स्तुति करना है। प्र. 41. पहला 'नमोत्थु णं' किसको दिया जाता है? उत्तर पहला 'नमोत्थु णं' सिद्ध भगवन्तों को दिया जाता है। {99) श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र
SR No.034373
Book TitleShravak Samayik Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshwa Mehta
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy