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________________ 18. प्रतिमा, फोटो आदि स्थापना निक्षेप की पूजा पाठ, धूप दीप नहीं करूँगा/करूँगी। 9. यावज्जीवन कोई भी देवी-देवता व लौकिक त्यौहार, होली, रंगपंचमी, दीपावली पूजन, मेला, शीतला आदि में प्रतिमा नहीं पूनँगा/पूनँगी। 10. देवी-देवाताओं की अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए या अन्य कारणवश सेवा भक्ति मान्यतादि नहीं करूँगा/करूँगी। 11. सुख शांति समाधि में नित्य नवकार मंत्र की माला या आनुपूर्वी ( ) गिगूंगा/गिनूँगी। 12. प्रतिदिन ( ) वंदना करूँगा/करूँगी। 13. अपने क्षेत्र में विराजमान साधु-साध्वियों के नियमित दर्शन करूँगा/ करूँगी। 14. मैं प्रतिदिन ( ) मिनट शास्त्र वचन सुनूँगा या धार्मिक पुस्तक का वाचन करूँगा/करूँगी। 15. आत्मचिन्तन ( )मिनट करूँगा/करूँगी। अतिचार संका वीतराग कथित गहन गंभीर वचन सुनकर, यह सत्य है या असत्य इस प्रकार संदेह करना। कंखा- मिथ्या मार्ग का आडम्बर, चमत्कार देखकर वीतराग कथित धर्म-मार्ग को छोड़कर दूसरे मिथ्या-मार्ग की आकांक्षा करना। वितिगिच्छा- धर्म, तप, जप के फल में संदेह करना कि इतना करता हूँ लेकिन मुझे इसका फल मिलेगा या नहीं।
SR No.034372
Book TitleShravak Ke Barah Vrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangla Choradiya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2015
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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