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________________ जैसे-जीवन पर्यन्त नववाड़ सहित अखण्ड ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना। दिन में मैथुन सेवन का त्याग करें। रात की मर्यादा करें। पाँचों तिथियों और पर्व के दिनों में मैथुन सेवन का सर्वथा त्याग करें । 12. दिशि-अपने स्थान से चारों दिशाओं में स्वाभाविक कितने किलोमीटर से आगे आवागमन नहीं करना उसकी मर्यादा करें। ऊँची दिशा में पहाड़ पर अथवा तीन चार मंजिल के मकान पर जाना हो तो उसकी मर्यादा करे। नीची दिशा भोयरें आदि में जाना हो तो उसकी मर्यादा करे । विशेष परिस्थिती में पाँच नवकार मंत्र के आगार से मर्यादा करना । तार, पत्र, टेलिफोन, स्वयं करने की मर्यादा करें। भारत वर्ष या अमुक-अमुक देश। 13. स्नान-पूरे शरीर पर पानी डालकर स्नान करना ‘बड़ी स्नान ́ है। पूरे शरीर पर गीले कपड़े से पोंछना 'मध्यम' स्नान है और हाथ पाँव, मुँह धोना 'छोटी स्नान' है। इसकी मर्यादा करना तथा स्नान में कुल पानी की मर्यादा लीटर अथवा बाल्टी । तालाब, नल, वर्षा या बिना माप के पानी का त्याग करना। लोकाचार का आगार । 14. भत्त-दिन में कुल कितनी बार खाना, उसकी मर्यादा करना, भोजन करने में जितनी वस्तु आवे उन सभी के वजन का समुच्चय परिमाण करें। पीने के पानी का भी परिमाण करें। श्रावक के तीन मनोरथ आरंभ परिग्रह तज करि, पंच महाव्रत धार । अंत समय आलोयणा, करूँ संथारो सार ।। 1. पहले मनोरथ में श्रावक जी यह भावना भावे कि - " कब वह शुभ समय प्राप्त होगा, जब मैं अल्प या अधिक परिग्रह का त्याग करूँगा । 63
SR No.034372
Book TitleShravak Ke Barah Vrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangla Choradiya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2015
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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