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________________ फल स्थानांग सूत्र के तीसरे स्थान में सूत्र नं. 7 में सदोष दान देने पर अगले जन्म में अल्प आयु का बंध होना बताया है। अर्थात् सदोष दान देने पर अल्प आयु का बंध होता है। स्थानांग सूत्र के आठवें सूत्र में भक्तिपूर्वक, शुद्ध साधु को निर्दोष सुपात्र दान देने पर, शुभ दीर्घ आयु का बंध होता है तथा अन्य जगह कर्म निर्जरा व तीर्थंकर गोत्रबंध एवं सम्यक्त्व प्राप्ति का कारण भी बताया है। आगार अनिवार्य कारण से, अनुपयोग से, पराधीनता से, नौकरी की वजह से, मालिक की आज्ञा से, दुष्काल, विषम परिस्थिति में एवं गलती से असूझता आहार, बहरा दिया जाय तो आगार, विशेष कारण से, दूसरों को बहराने के लिए कहना पड़े तो आगार । अतिथि संविभाग व्रत की शिक्षाएँ 1. श्रावकों को दो प्रहर दिन चढ़े तब तक अपने घर के दरवाजे खुले रखने चाहिए। 2. साधु-साध्वियों को कल्पनीय वस्तुओं को बड़े भक्ति-भाव से सामने उपस्थित करना चाहिए। तथा जो चीज उनके काम आये उसे बहुमान पूर्वक चढ़ते परिणामों से अर्पित करना चाहिए। 3. आहारादि प्रतिलाभते समय असूझता नहीं हो जाय इसका पूरा ख़याल रखना चाहिए । 4. असूझता, आधाकर्मी, औद्देशिक आहारादि की भावना नहीं भानी चाहिए। 5. निस्वार्थ भाव से, उत्कृष्ट भावों से साधु-साध्वियों को प्रतिलाभ से श्रद्धा दृढ़ होती है, तथा उत्कृष्ट रसायन आने पर तीर्थंकर नाम-गोत्र भी उपार्जन होता है। शुभ दीर्घायुष्य का बंध होता है। बारह व्रत सम्पूर्ण 59
SR No.034372
Book TitleShravak Ke Barah Vrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangla Choradiya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2015
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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