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________________ सुनकर हम पंचमहाव्रत धारी साधु बन सकें तो सर्वश्रेष्ठ है, अन्यथा कम 4 से कम बारह व्रतधारी श्रावक तो बनें ही। यह अनमोल जीवन, व्रत धारण किये बिना चला गया तो पुन: मिलना कठिन है। प्रस्तुत पुस्तक 'श्रावक के बारह' में व्रत की प्रतिज्ञा, अतिचार, आगार, नियम तथा शिक्षाएँ, इस क्रम से प्रत्येक व्रत का स्वरूप समझाया गया है। वर्तमान में जो नियम आवश्यक प्रतीत होते हैं उन्हें भी व्रतों के स्वरूप में समाहित करने का प्रयास किया गया है। हम व्रतों की महत्ता को समझेंगे और उन्हें जीवन में धारण करेंगे। इसी भावना से पुस्तक का प्रकाशन किया गया है। पुस्तक की सामग्री एकत्रित करने के लिए सौ.कां. मंगला जी चोरडिया, जलगाँव (महाराष्ट्र) ने समय-समय पर गुरुभगवन्तों की सेवा में जाकर आवश्यक मार्गदर्शन प्राप्त किया, जिससे पुस्तक के कलेवर में विशिष्टता दृष्टिगोचर होती है। हम उनके हृदय से आभारी हैं। पुस्तक के प्रूफ संशोधन में श्री सौभाग्यमल जी जैन, अलीगढ़-रामपुरा एवं श्री नवरतनजी भंसाली, बेंगलोर का सहयोग प्राप्त हुआ, एतदर्थ मण्डल परिवार आपका भी आभारी है। आचार्यश्री हीराचन्द्रजी म.सा. की सदैव यह प्रेरणा रहती है कि हम अविरति से विरति की ओर कदम बढ़ायें। हम आचार्यप्रवर की प्रेरणा को साकार कर बारह व्रतधारी श्रावक बनकर अपने जीवन को कृतार्थ करेंगे। इसी मंगल मनीषा के साथ... : निवेदक : कैलाशमल दुग्गड़ अध्यक्ष सम्पतराज चौधरी कार्याध्यक्ष विनयचन्द डागा मंत्री सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल
SR No.034372
Book TitleShravak Ke Barah Vrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangla Choradiya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2015
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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