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________________ अचार भी अधिक काल का अर्थात् दिन ( का नहीं खाऊँगा/खाऊँगी । 4. मैं कन्दमूल का भक्षण नहीं करूँगा / करूँगी, अनन्त जीव होते हैं । क्योंकि कन्दमूल में 5. लोहार, सोनार, ठठेरा, छीपा, नीलगर, रंगरेज, धोबी आदि का धन्धा नहीं करूँगा/करूँगी। यदि इनकी बनाई हुई वस्तुएँ बेचनी पड़े तो उसका आगार है । लखारा, भड़भूँजा, चूनीगर, भटियारा आदि का काम न करूँगा / करूँगी और न करवाऊँगा / करवाऊँगी । घर खर्च के लिए छूट । 7. मैं नाटक, सर्कस, नट और बाजीगर का खेल, ख्याल (रम्मत) भाँडचेष्टा, गायन आदि करके या दूसरों से करा के आजीविका नहीं करूँगा/करूँगी। 8. मैं कसाई, खटीक, चमार, कलाल, चाण्डाल आदि को ब्याज से रुपये उधार नहीं दूँगा/दूँगी और न इनके साथ व्यापार करूँगा / करूँगी। 6. ) से ज्यादा दिन 9. मैं मिट्टी के खिलौने बनाकर नहीं बेचूँगा / बेचूँगी । 10. मैं हिंसक अस्त्र शस्त्र न बनाउँगा / बनाउँगी। 11. मैं नहर - नदी का पुल, नाव, स्टीमर, जहाज आदि नहीं बनाऊँगा / बनाऊँगी तथा इनको बनवाने का ठेका नहीं लूँगा / लूँगी और न इनसे भाड़ा कमाऊँगा / कमाऊँगी | 12. मैं शर्बत बनाने या वनस्पति, अर्क निकालने का अथवा तम्बाकू बनाने का धन्धा नहीं करूँगा /करूँगी। 13. मैं चूहे आदि जन्तुओं को पकड़ने के, तोते, मैना आदि प्राणियों को बन्द रखने के पींजरे बनाने और बेचने का धन्धा नहीं करूँगा / करूँगी। 41
SR No.034372
Book TitleShravak Ke Barah Vrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangla Choradiya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2015
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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