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________________ 4. नीतिपूर्वक उद्योग करना चाहिए। 5. न्याययुक्त छोटे धंधों की अपेक्षा अन्याययुक्त बड़े धन्धे महाभयंकर ____ तथा अधोगति में पहुँचाने वाले हैं। 6. दूसरे की संपत्ति देखकर मन में ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए। 7. कसाई, खटीक आदि क्रूर हिंसक मनुष्यों को धन्धे के लिए रुपये उधार नहीं देना चाहिए, अथवा उनके धन्धों को उत्तेजना मिले, ऐसा काम नहीं करना चाहिए। 8. धर्म और आबरू की रक्षा न हो ऐसे धंधे व नौकरी नहीं करना चाहिए। 9. किसी के उधार लिये हुये द्रव्य को वापस नहीं देने की इच्छा कभी नहीं रखनी चाहिए। 10. शक्ति से अधिक खर्च नहीं करना चाहिए और न कंजूसी ही करनी चाहिए, लेकिन उत्तम कामों में यथाशक्ति अवश्य सहायता करनी चाहिए। 11. धर्मार्थ निकाला हुआ द्रव्य घर में नहीं रखना चाहिए, किन्तु उसको धर्मार्थ नियत कर देना चाहिए या धर्म कार्य में खर्च कर देना चाहिए। यदि धर्मार्थ निकाले हुए द्रव्य का एक पैसा भी घर खर्च में आ जाय तो बड़ी भारी पूँजी को धक्का पहुँचा देता है। 12.लक्ष्मी चंचल है, इसलिए इसका अभिमान नहीं करना चाहिए, किन्तु विनीत, विवेकी बनकर लक्ष्मी का लाभ लेना चाहिए। 13. व्यापार अपनी पूँजी और हैसियत से अधिक नहीं करना चाहिए। ! 14. अतिसर्वत्र वर्जयेत्। 21
SR No.034372
Book TitleShravak Ke Barah Vrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangla Choradiya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2015
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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