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________________ पाँचवाँ स्थूल परिग्रह विरमण व्रत अपरिग्रह अणुव्रत की प्रतिज्ञा द्रव्य से नौ प्रकार के बाह्य परिग्रह की निम्न प्रकार से मर्यादा करता/करती हूँ। क्षेत्र से - समस्त लोक के द्रव्यों की निम्न प्रकार से मर्यादा करता/करती हूँ और मर्यादा से बाहर के क्षेत्र में सब परिग्रह का त्याग करता/करती हूँ। काल से जीवन पर्यन्त । भाव से चार कषाय, नौ नोकषाय तथा मिथ्यात्व इस प्रकार चौदह प्रकार के आभ्यन्तर परिग्रह से निवृत्त होने का मुख्य लक्ष्य रखते हुए एक करण तीन योग से त्याग करता/करती हूँ । — परिग्रह विरमण व्रत के अतिचार 1. खेत्तवत्थुप्पमाणाइक्कमे - उघाड़ी या ढँकी जमीन की जितनी मर्यादा की है, उसके उपरांत रखना । 2. हिरण्ण सुवण्णप्पमाणाइक्कमे - सोना, चाँदी आदि की जितनी मर्यादा की है, उसके उपरांत रखना या दूसरों के नाम चढ़ाना। 3. धणधण्णप्पमाणाइक्कमे - धन-धान्य के परिमाण के उपरान्त रखना तथा दूसरों के नाम रखना 4. दुप्पयचउप्पयप्पमाणाइक्कमे - दुपद - नौकर-चाकर (दास-दासी), चउप्पद-गाय, भैंस, घोड़ा, ऊँट आदि जानवर परिमाण के उपरान्त रखना । 5. कुवियप्पमाणाइक्कमे-कपड़ा, ताम्बा, पीतल, फर्नीचर, वाहन आदि कुविय धातु वस्तु मर्यादा उपरान्त रखना। पाँचवाँ परिग्रह विरमण व्रत के नियम नोट-जितने नियमों का पालन करना हो, उनके आगे के कोष्ठक ) में परिमाण लिखें। 24
SR No.034372
Book TitleShravak Ke Barah Vrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangla Choradiya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2015
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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