SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 10.मैं पत्नी/पति के रहते दूसरी शादी नहीं करूँगा /करूँगी। 11.मैं गंदे साहित्य का वाचन नहीं करूँगा / करूँगी । 13. प्राकृतिक अंगों के सिवा सब अनंग हैं, उनसे काम क्रीड़ा नहीं करूँगा/करूँगी। 14. देव, तिर्यंच, वेश्या, परस्त्री, विधवा, कुँवारी का पूर्ण त्याग (विकारी दृष्टि छोड़ पवित्र भाव रखे। माँ, बहन, बेटी, सती, साध्वी समझे) 15. अनंग क्रीड़ा का त्याग। 16. इतनी उम्र ( ) तक व इतने उम्र ( ) के बाद शील पालूँगा । 17. बाल व वृद्ध विवाह नहीं कराऊँगा । उपदेश-भगवान महावीर ने 'तवेसु वा उत्तमं बंभचेरं' कहा है। ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन करना सर्वश्रेष्ठ है। मर्यादा में पुत्र सुन्दर, सशक्त, तेजस्वी, सद्गुणी, ओजस्वी, वर्चस्वी, यशस्वी, शरीर स्वस्थ, कंचनवर्ण, दृढ़ मन, छाती, हृदय, देवों का वंदनीय बने । ब्रह्मचर्य अणुव्रत की शिक्षाएँ 1. ब्रह्मचर्य व्रत, वीर्यरक्षा, शरीरबल, मनोबल और आत्मबल की वृद्धि करने वाली अमोघ, अमूल्य औषधि है। 2. मर्यादित दिनों में भी शरीर की सुरक्षा की दृष्टि से एक रात्रि में एक बार से अधिक कामसेवन नहीं करना चाहिए । 3. अपनी संतान का विवाह बाल्यावस्था में नहीं करना चाहिए। 4. अश्लील गाली और असभ्य वचन नहीं बोलना चाहिए । 5. विशेष कारण बिना अविश्वासी पुरुष/स्त्री के घर नहीं जाना चाहिए। 6. व्यभिचारी और विषयलोलुपी पुरुष/स्त्री की संगति नहीं करनी चाहिए। 22
SR No.034372
Book TitleShravak Ke Barah Vrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangla Choradiya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2015
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy