SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दुरुपयोग नहीं करूँगा/करूँगी। राज्य विरुद्ध वस्तुओं का तथा बिना लाइसेंस व्यापार नहीं करूँगा/करूँगी। अदत्तादान विरमणव्रत के आगार (छूट) 1. किसी संबंधी या मित्र या अपने पर विश्वास रखने वाले का घर, उसके पीछे खोलकर कोई चीज लेनी पड़े तो आगार है, किन्तु उसकी सूचना उसे तत्काल दूंगा। 2. अल्प मूल्य वाली ऐसी वस्तुएँ जिनका लेना व्यवहार में चोरी नहीं समझा जाता, लेनी पड़े तो आगार। 3. मार्ग में गिरी हुई वस्तु, भूली भटकी वस्तु जिसके मालिक का पता लगाना संभव न हो तो ऐसी वस्तु रखने का आगार। 4. भूमि में गड़ा हुआ धन यदि हाथ में लगे और उसका मालिक नहीं मिले तो उसका कुछ भाग धर्मार्थ में लगाकर शेष रखने का आगार। 5. आयकर, बिक्रीकर, संपदाकर, उपहार कर आदि की पूर्ण पालना ____ अपरिहार्य स्थितियों में नहीं कर पाऊँ तो उसका आगार। अचौर्य अणुव्रत की शिक्षाएँ 1. चोरी दो तरह की होती है। एक तो चोर की भाँति मालिक की अनुपस्थिति में रात्रि आदि के समय सेंध लगाकर या ताला तोड़कर चोरी की जाती है दूसरी साहूकारी ढंग से चोरी। जो दिन दहाड़े लूटता है। भोले लोगों की आँखों में धूल झोंकता है। रिश्वत लेना, सरहद दबाना भी चोरी है। श्रावक को दोनों प्रकार की चोरी से बचना चाहिए। 2. धर्म और अर्थ की सिद्धि के लिए सदा अचौर्य और प्रामाणिकता का व्यवहार करना चाहिए। 3. हे आत्मन्! दुश्मन के दूत के समान अन्याय और अनीति से प्राप्त । AKECE
SR No.034372
Book TitleShravak Ke Barah Vrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangla Choradiya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2015
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy