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________________ 15. हितबुद्धि से डराने, धमकाने तथा ताड़ना देने का आगार। 6. यदि कोई पशु या मनुष्य बिगाड़ करता है तो बाँधने, भगाने का आगार। 7. लौकिक व्यवहार में नाक-कान के छेद करने-कराने का आगार। 8. विषयादि सेवन करने से अथवा मोरी, पाखाना आदि में लघु शंका (मल मूत्र) आदि करने से सम्मूर्छिम जीवों की विराधना होती है, किन्तु इनका मेरे आगार हैं। अहिंसा व्रत की शिक्षाएँ 1. परिवार तथा व्यापार के निमित्त इतने धान्य का संचय नहीं करना चाहिए, जिसमें जीवों की उत्पत्ति हो, क्योंकि उससे रोग उत्पन्न होते हैं और त्रस जीवों की हिंसा भी होती है। 2. ईंधन (लकड़ी गैस के चूल्हे, सिगड़ी आदि) बिना देखे नहीं जलाना चाहिए। 3. घी, तेल, दूध, दही, जल, जूठन आदि के बर्तनों को उघाड़ा नहीं ___रखना चाहिए। 4. रात्रि में भोजन बनाना व खाना दोष का कारण है, अतः जितना बन सके उतना त्याग रखना चाहिए। 5. खटमल, मक्खी, मच्छर, नँ, लीख,चूहे आदि उत्पन्न नहीं होने ____ पाए, ऐसा पहले से विवेक रखे। 6. जूठन आम रास्ते, मोरी या गट्टर में न डालकर उसको एक साथ इकट्ठा करके पशुओं को खिला देना चाहिए। 7. खाने-पीने की वस्तुएँ रसचलित हो गयी हों, गन्ध, वर्ण बदल गया हो, वस्तु में लार पड़ गयी हो, लाल सफेद अथवा नीलन-फूलन ।
SR No.034372
Book TitleShravak Ke Barah Vrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangla Choradiya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2015
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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