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________________ 12 ----- ---- पुण्य-पाप तत्त्व व गिरवी की वस्तु हड़प जाना, मृषा उपदेश देना, बहकाना, भ्रामक वचन बोलना, उत्तेजनात्मक भाषण देना, जनता को बर्गलाना, हानिकारक वस्तु को गुण युक्त लाभकारी वस्तु कहकर बेचना, झूठे विज्ञापन देना, वादे से मुकर जाना, स्वार्थ के लिए अपने वचन को पलट देना आदि मिथ्या भाव आना भी मृषावाद है। (3) अदत्तादान-चोरी करना, दूसरों की वस्तु का अपहरण करना व बलात् अधिकार जमा लेना, कम तोलना-मापना, अच्छी वस्तु दिखाकर बुरी वस्तु देना, वस्तु में मिलावट करना, लॉटरी, चिट-फंड, जुआ आदि से लोगों का धन हरण करना, धोखाधड़ी करना, अधिक श्रम करवाकर कम पारिश्रमिक देना, शोषण करना, जेब काटना, डाका डालना, लूटपाट करना, अच्छा नमूना दिखाकर नकली वस्तु देना, पुरस्कार का लोभ देकर फँसाना, साहित्यिक चोरी करना आदि चोरी के अनेक रूप हैं। मुक्ति, शांति, स्वाधीनता, प्रसन्नता आदि अपने गुणों का अपहरण होना भी अदत्तादान है। इससे अविश्वास की उत्पति होती है जो भारी हानि है। (4) मैथुन-काम-विकार में प्रवृत्त होना, संभोग करना, मैथुन है। मैथुन के अनेक प्रकार हैं, यथा-रति क्रीड़ा करना, वेश्यागमन करना, परस्त्री गमन करना, व्यभिचार सेवन करना, बलात्कार करना, समलिंगी के साथ संभोग करना, अश्लील फिल्म देखना, तीव्र नशीली वस्तुओं का सेवन कर कामोत्तेजन करना, नग्न नृत्य देखना आदि मैथुन के अनेक रूप हैं। आत्मभाव भूलना, निज स्वरूप की विस्मृति होना और पर से संग व भोग करना भी मैथुन है। इससे आकुलता उद्वेग उत्पन्न होता है जिससे चित्त की शांति व समता भंग होती है। (5) परिग्रह-वस्तुओं का संग्रह करना परिग्रह है। परिग्रह के असंख्य रूप हैं यथा-भूमि, भवन व सिक्कों का संग्रह, वस्त्रों का संग्रह, मूर्तियों का
SR No.034369
Book TitlePunya Paap Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2017
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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