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________________ पुण्य-पाप विषयक ज्ञातव्य तथ्य 263 अघाती कर्मों की पुण्य प्रकृतियों का उदय भौतिक विकास का तथा अघाती कर्मों की पाप प्रकृतियों का उदय भौतिक ह्रास का द्योतक है। घाती कर्मों की पाप-प्र -प्रकृतियों का उदय आध्यात्मिक ह्रास का एवं इनका क्षयोपशम, उपशम तथा क्षय आध्यात्मिक विकास का सूचक है। मन, वचन, काय आदि की प्राण शक्ति का विकास भौतिक विकास है, यही प्राणी का विकास है। दया, दान वैयावृत्त्य आदि सद्प्रवृत्तियों का भावात्मक फल राग-द्वेष आदि दोषों का निवारण है तथा आध्यात्मिक विकास है और इन सद्प्रवृत्तियों के क्रियात्मक रूप का परिणाम भौतिक विकास है। पुण्य का आस्रव शुद्धोपयोग से कषाय के क्षय व क्षीणता से होता है और पाप का आस्रव अशुद्धोपयोग (कषाय के उदय) से होता है। पुण्य का आस्रव पाप के आस्रव का निरोध व अवरोध करता है। आयुकर्म की पुण्य प्रकृतियों को छोड़कर शेष समस्त पुण्य कर्मों की प्रकृतियों की स्थिति का क्षय कषाय के क्षय से होता है। पुण्य और पाप ये दोनों भाव परस्पर में विरोधी हैं एवं इन दोनों का आस्रव परस्पर विरोधी है। कषाय की मंदता शुद्धोपयोग व शुभ योग रूप होती है, जबकि मंद कषाय अशुभ व पाप रूप होता है। कषाय की मंदता से कर्मों (स्थिति बंध) का क्षय होता है और मंद कषाय से कर्मों का (स्थिति) बंध होता है।
SR No.034369
Book TitlePunya Paap Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2017
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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