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________________ सम्पन्नता पुण्य का और विपन्नता पाप का परिणाम ---- ------- 235 परन्तु शांति में रमण करना प्रगति में बाधा है। शान्ति में रमण न करने से शान्ति, मुक्ति में और मुक्ति प्रीति में परिणत हो जाती है। यही कैवल्य की उपलब्धि है। आशय यह है कि सम्पन्न वही है जो कमी रहित है, अभाव रहित है। अभाव व कमी दरिद्रता की द्योतक है। अभाव का अनुभव तभी होता है जब कुछ पाने की कामना हो और उसकी प्राप्ति न हो। वस्तु की प्राप्ति श्रम, शक्ति व काल पर निर्भर करती है। अत: कामना-पूर्ति तत्काल नहीं होती है और जब तक कामना की पूर्ति नहीं होती तब तक कामना अपूर्ति-जन्य अभाव का अनुभव होता है जो दरिद्रता का ही रूप है। अत: कामना अपूर्ति की अवस्थाओं में दरिद्रता व अभाव (अलाभ) का दु:ख भोगना ही पड़ता है। यह सर्वविदित है कि सब कामनाओं की पूर्ति किसी की कभी भी नहीं होती, केवल कुछ कामनाओं की ही पूर्ति होती है। अत: मानव मात्र को कामना-अपूर्ति जन्य अभाव (कमी व दारिद्र्य) का दु:ख सदा बना ही रहता है। यही नहीं, जिस कामना की पूर्ति हो जाती है उससे जो सुख प्रतीत होता है, वह सुख भी प्रतिक्षण क्षीण होता हुआ अंत में नीरसता में बदल जाता है। इस प्रकार कामना पूर्ति से सुख पाने रूप जिस उद्देश्य की सिद्धि हुई, उस सिद्धि के मिलने न मिलने का अर्थ समान हो जाता है। कामना पूर्ति जनित रस (सुख) नीरसता में बदलता ही है। नीरसता किसी को भी पसन्द नहीं है। अत: नीरसता मिटाने के लिए नवीन कामना की उत्पत्ति होती है। इस प्रकार कामना पूर्ति के साथ कामना की उत्पत्ति जुड़ी हुई है और कामना उत्पत्ति के साथ अभाव, दरिद्रता आदि दु:ख जुड़े हुए हैं। अत: कामना अपूर्ति से ही नहीं, कामना पूर्ति से भी अभाव, दरिद्रता आदि दु:ख जुड़े हुए हैं। तात्पर्य यह निकला कि कामना की उत्पत्ति
SR No.034369
Book TitlePunya Paap Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2017
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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