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________________ 216--- --- पुण्य-पाप तत्त्व ___ अभिप्राय यह है कि जहाँ कामना है, वहाँ अंतराय कर्म का उदय है। अत: जिसकी जितनी अधिक कामनाएँ हैं, उसके उतना ही अधिक अंतराय कर्म का उदय है और जितनी कामनाएँ कम होती है अंतराय कर्म का उदय भी उतना ही कम हो जाता है। कामना का अभाव होना तत्संबंधी अंतराय कर्म के उदय का अभाव होना है। अंतराय कर्म का उदय न रहने से तत्संबंधी अंतराय कर्म के उदय का अभाव होना है। अंतराय कर्म का उदय न रहने से तत्संबंधी कामना-आपूर्ति का दु:ख मिट जाता है, जिससे शांति व सुख का अनुभव होता है। यह सुखानुभूति कामना का अभाव होने से होती है। परंतु प्राणी इसे कामना पूर्ति के होने से मानता है। यही मूल में भूल है। आशय यह है कि सुख कामना पूर्ति में नहीं है, कामना के अभाव में है, क्योंकि कामना पूर्ति के समय पुन: वही स्थिति हो जाती है जो कामना उत्पत्ति से पूर्व थी अर्थात् कामना का अभाव था। अत: सुख कामना के अभाव में है। जो इस तथ्य को स्वीकार कर लेता है उसके नवीन कमानाओं की उत्पत्ति नहीं होती है। परंतु जो यह मानता है कि सुख कामना पूर्ति से मिलता है, उसके मन में उस कामना पूर्ति के सुख की जाति के अगणित सुखों को पाने के लिए अनेक कामनाओं का जन्म होता है। जैसे जो बीज भूमि में गिरता है वह उगकर अपनी जाति के अगणित फल देता है, नये बीजों को पैदा करता है तथा जैसे किसी बीज के गल व जल जाने पर वह निर्जीव हो जाता है फिर वह उगता नहीं है, इसी प्रकार जो अपने सुख का कारण कामना पूर्ति को न मानकर, कामना के अभाव को सुख मानता है, उसकी कामना निर्जीव, निर्मूल हो जाती है, वह नवीन कामनाओं को जन्म नहीं देती है। परंतु जो कामना-पूर्ति में सुख मानता है उसकी कामना पूर्ति अनेक नवीन कामनाओं की उत्पत्ति के लिए बीज-वपन का कार्य करती है। अत: कामना-पूर्ति हो जाने से उसके अंतराय कर्म का क्षय नहीं होता है, अपितु उस जाति की नवीन कामनाओं
SR No.034369
Book TitlePunya Paap Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2017
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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