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________________ ------191 शुभ योग (सद्प्रवृत्ति) से कर्म क्षय होते हैं ---- व भौतिक रूप से सर्वांगीण विकास होता है, फिर उसे कुछ पाना, जानना व करना शेष नहीं रहता है। वह कृतकृत्य हो जाता है। श्री वीरसेनाचार्य ने ‘उवसम-खय-मिस्सया व मोक्खयरा' के द्वारा स्पष्ट कहा है कि क्षायोपशमिक भाव (शुभ, शुद्ध) से कर्म क्षय होते हैं, कर्म-बंध नहीं होते हैं। कर्म बंध का कारण एक मात्र उदय भाव ही है। इसे समझने के लिए हमें कर्म-बंध के कारणों का विचार करना होगा। कर्म बंध चार प्रकार का है-1. प्रकृति बंध, 2. स्थिति बंध, 3. अनुभाग बंध और 4. प्रदेश बंध। इनमें मुख्य है स्थिति बंध। कारण कि अनुभाग बंध निर्भर करता है प्रदेश बंध पर, जैसा कि कहा है 'पदेसेहि विणा अनुभागाणुववत्तीदो।' अर्थात् प्रदेश-बंध के बिना अनुभाग-बंध नहीं हो सकता तथा प्रकृति और प्रदेश-बंध स्थितिबंध के अभाव में बंध संज्ञा को प्राप्त नहीं होता है, जैसा कि कहा है जोगा पयडिपदेसा ठिदिअणुभागा कसायदो होति। अपरिणच्छिण्णेसु य बंधट्ठिदि कारणं णत्थि।। -गोम्मटसार कर्मकाण्ड, गाथा 257 और धवला पुस्तक 12, पृष्ठ 289 अर्थात् प्रकृति और प्रदेश ये दोनों ही बंध योगों के निमित्त से होते हैं और स्थिति व अनुभाग बंध कषाय के निमित्त से होते हैं। कषाय रहित अवस्था स्थिति बंध का कारण नहीं है, अत: वह कर्म बंध का कारण भी नहीं है। इस सिद्धांत को स्पष्ट करते हुए श्री वीरसेनाचार्य ने कहा है“सादावेदणीयस्स बंधो अत्थि त्ति चेद। ण तस्स ट्ठिदि-अणुभागबंधाभावेण सुक्ककुड्डपक्खित्तवालुवमुट्ठिव्व जीवसंबंधे विदिए समए चेव णिवंदतस्स बंधववएसविरोहादो।" -धवला पुस्तक 13, पृष्ठ 54
SR No.034369
Book TitlePunya Paap Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2017
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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