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________________ (17) मुक्ति में पुण्य सहायक, पाप बाधक जैन कर्म सिद्धांतानुसार पुण्य आत्म-विकास का द्योतक एवं मुक्ति का सहायक अंग है, मुक्ति का बाधक व घातक नहीं है। परंतु वर्तमान में कतिपय जैन सम्प्रदाय वालों का ऐसा मानना है कि-"जैसे मुक्ति के लिए पाप त्याज्य है वैसे ही पुण्य भी त्याज्य है, क्योंकि वह मुक्ति में बाधक है। पुण्य करते-करते अनन्त जन्म बीत गये, अनंत बार नव ग्रैवेयक तक जा आए, फिर भी मुक्ति नहीं मिली। इसका कारण है पाप को तो हेय समझकर, त्याग करके पंच महाव्रत धारण किये, परन्तु पुण्य को न हेय समझा और न त्यागा। यदि पाप की तरह पुण्य को हेय समझकर त्याग दिया जाय तो मुक्ति कभी की मिल जाती।" ___ उपर्युक्त यह मान्यता कि 'पुण्य मुक्ति में बाधक हैं' कर्म सिद्धांत व आगम के विरुद्ध है। क्योंकि त्याज्य वही होता है जो आत्म-गुणों का घात करता है, जो अशुभ व पाप रूप है। सभी पुण्य प्रकृतियाँ पूर्ण रूप से अघाती हैं इनसे आत्म-गुण का घात होता तो देशघाती कहलाती, परंतु ऐसा नहीं है। पुण्य प्रकृतियाँ पूर्ण रूप से अघाती होने से इनसे आत्मा का अहित नहीं होता है। अत: पुण्य मुक्ति में बाधक और त्याज्य नहीं है।
SR No.034369
Book TitlePunya Paap Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2017
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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