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________________ -----135 बंध का मुख्य कारण कषाय है, योग नहीं ------ समस्त पाप प्रकृतियों की स्थिति व अनुभाग में वृद्धि होती है तथा कषाय की कमी से स्थिति व अनुभाग में कमी होती है। निष्कर्ष यह है कि कर्मों का बंध, सत्ता, उद्वर्तन (वृद्धि), अपवर्तन (कमी), क्षय आदि कर्मों की समस्त स्थितियाँ कषाय पर ही निर्भर करती हैं। कहा भी है-“कषायमुक्तिः किल मुक्तिरेव' अर्थात् कषाय मुक्ति ही वास्तविक मुक्ति है। पुण्य के स्थिति बंध का कारण : कषाय अब यह प्रश्न उठता है कि पुण्य का स्थिति बंध अशुभ क्यों है? समाधान-जो व्यक्ति यह चाहता है कि मेरा प्रभाव दूसरों पर पड़े, मेरे सच्चरित्र, कर्त्तव्यनिष्ठा से अन्य जन प्रभावित हों, दूसरों पर मेरे व्यक्तित्व की छाप पड़े, महत्त्व बढ़े और आगे भी बना रहे, मेरे गुणों से लोग प्रभावित हों, मुझे सज्जन, महापुरुष समझें, मेरी गिनती महापुरुषों में, सिद्ध पुरुषों में हो, मेरे मरने के पश्चात् भी लोग मुझे याद करें, मेरा सत्कार हो, सम्मान हो, लोग मुझे पूजें, सुख-सुविधा पहुँचायें आदि फल की आशा रखे तथा अपने सरलता, क्षमा, निर्लोभता, मृदुता आदि गुणों से अपने महत्त्व का अंकन करे तो उसका ऐसा चाहना या करना मान कषाय का सूचक है। इससे उसके पुण्य व पाप प्रकृतियों का स्थिति बंध बढ़ता है तथा पुण्य प्रकृतियों का अनुभाग घटता है। सद्प्रवृत्तियों के करने का राग, फल की आशा तथा गुणों का अभिमान भयंकर दोष है। इस दोष के रहते साधक आगे नहीं बढ़ सकता। जब साधक अपने में अपनी कोई विशेषता नहीं पाता, तब गुणों का अभिमान नहीं रहता है, गुण उसका सहज स्वभाव बन जाते हैं। फिर गुणों की उपलब्धियों के लिए श्रम या अनुष्ठान नहीं करना पड़ता। वह सहज रूप से आगे बढ़ता है। सभी जीवों को गुण स्वभावत: स्वत: प्राप्त हैं, अत: जब
SR No.034369
Book TitlePunya Paap Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2017
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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