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________________ (11) अहिंसा, पुण्य और धर्म पुण्य की व्याख्या पहले कर आए हैं, यहाँ धर्म की कतिपय परिभाषाएँ दे रहे हैं - चत्तारि धम्मदारा-खंती, मुत्ती, अज्जवे, मदवे धर्म के चार द्वार हैं-क्षमा, संतोष, सरलता और मृदुता (नम्रता ) । -स्थानांग 4.4 समियाए धम्मे आरिएहिं पवेइए आर्य महानुभावों ने समभाव में धर्म कहा है। धम्मो मंगलमुक्किट्टं, अहिंसा संजमो तवो। धर्म उत्कृष्ट मंगल है। वह अहिंसा, संयम एवं तप रूप है। -दशवैकालिक 1.1 धम्मस्स विणओ मूलं । धर्म का मूल विनय है। धम्मो वत्थुसहावो। -आचारांग 1.8.3 वस्तु का स्वभाव ही धर्म है। -दशवैकालिक 9.2.2 -कार्तिकेयानुप्रेक्षा 478 असुहादो विणिवत्ति, सुहे पवित्ति य जाण चारित्तं । अशुभ से निवृत्ति और शुभ में प्रवृत्ति को चारित्र जानो । - द्रव्यसंग्रह, 45
SR No.034369
Book TitlePunya Paap Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2017
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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