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________________ ------ 65 तत्त्वज्ञान और पुण्य-पाप --- पंचसमिओ तिगुत्तो, अकसाओ जिइंदियो। अगारवो य णिस्सल्लो, जीवो हवइ अणासवो।। अर्थ-पाँच समिति वाला, तीन गुप्ति वाला, कषाय रहित, जितेन्द्रिय, तीन गारव रहित और तीन शल्य रहित जीव अनास्रवी होता है। संवर तत्त्व निरुद्धासवे संवरो। -उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन 29, गाथा 11 आस्रवनिरोधः संवरः।। -तत्त्वार्थ सूत्र, अध्ययन 9, सूत्र 1 अर्थात् आस्रव का निरोध होना, रुक जाना संवर है। यह कथन पाप के आस्रव के निरोध से ही संबंधित है, पुण्य के आस्रव के निरोध से नहीं। जैसाकि उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन 29, पृच्छा 55 में कहा हैसंवरेणं कायगुत्ते पुणो पावासवणिरोहं करेइ। अर्थात् संवर से पाप के आस्रव का निरोध होता है। संवर तत्त्व में संवर के 57 भेद कहे गये हैं समिति गुत्ती धम्मो अणुप्पेहा परीसह चरित्तं व। सत्तावन्नं भेया पणतिगभेयाइं संवरणे। -स्थानांग वृत्ति स्थान स गुप्ति-समिति-धर्मानुप्रेक्षा-परिषहजय-चारित्रैः। -तत्त्वार्थ सूत्र, अध्ययन 9, सूत्र 2 अर्थात् संवर समिति, गुप्ति, धर्म, अनुप्रेक्षा, परीषह जय और चारित्र रूप है। जिसके क्रमश 5, 3, 10, 12, 22 और 5 कुल 57 भेद होते हैं। इन 57 भेदों में एक में भी पुण्य के आस्रव का निरोध नहीं है। इन सबसे पुण्य के अनुभाव में वृद्धि ही होती है।
SR No.034369
Book TitlePunya Paap Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2017
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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