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________________ जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य ये कम्पन्न करती हुई पत्तियाँ सौर परिवार के ग्रहों के समान गोलाकार पथ पर तथा अपनी धुरी पर घूमने के रूप में दोनों गतियाँ भी करती हैं। इनकी गति में हवा के चलने या बन्द होने का प्रभाव नहीं पड़ता है। दिनभर की उठ-बैठ से व घूमने से थककर रात्रि को ये विश्राम करती है।' जैसे अन्य प्राणी संवेदनशील होते हैं, उन पर प्रहार होने व आघात पहुँचने से वे आहत होते हैं और मर जाते हैं; वैसे ही वनस्पति भी संवेदनशील होती है तथा उस पर प्रहार होने व आघात पहुँचने पर उसमें भी आह होती है और वह मर जाती है। उदाहरणार्थ-हम बीज को ही ले वह बड़ा संवेदनशील होता है। वह रोगी व अस्वस्थ बीजों के साथ रहना पसंद नहीं करता है। उसे अति गर्मी या नमी वाली जगह पसंद नहीं है, ऐसे स्थानों पर उसकी जीवन शक्ति तीव्रता से क्षीण होती है तथा वह निर्जीव हो जाता है। इसी प्रकार वह आघात भी सहन करने में सक्षम नहीं होता है। यदि बीज को छ: फुट की ऊँचाई से छ: बार गिराया जाय तो वह मर जायेगा। बीज के बाहरी शरीर पर भले ही घाव न दिखाई दे परंतु उसके भीतर का घाव उसकी जान ले लेगा फिर भले ही आप उसे अच्छी भूमि में बोये, जल से सिंचन करे, उसमें अंकुर नहीं फूटेगा। सजीव वनस्पति किस प्रकार निर्जीव होती है इसके कारणों के विषय में जैनग्रंथों में कहा है सुक्कं पक्कं अंबिललवणेण मिस्सअं दव्वं । जं जंतेण य छिण्णं तं सव्वं फासुअं भणिअं॥ अर्थात् वनस्पति सुखाने, पकाने, तपाने, खटाई तथा लवण 1. हिन्दुस्तान (दैनिक), 26 अप्रैल, 1979 2. कादम्बिनी, मार्च 1970, पृष्ठ 155
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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