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________________ 58 जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य आग साधारणत: एक ही प्रकार की समझी जाती है। परंतु वस्तुतः अनेक प्रकार, जाति व कुल वाली होती है। अनेक आगमों में आग के प्रकारों का वर्णन करते हुए कहा गया है इंगाले, जाला, मुम्मुरे, अच्ची, अलाए, सुद्धागणी, उक्का, विज्जू, असणी, णिग्याए, संघरिस समुट्ठिए, सूरकंत मणि णिस्सिए जे यावन्ने तहप्पगारा॥ ___ -पन्नवणा, प्रथम पद, सूत्र 23 अर्थात् अंगार, ज्वाला मुर्मुर अर्चि अरणि, शुद्धाग्नि, उल्का, विद्युत्, आकाश-अग्नि, वैक्रिय-अग्नि, संघर्ष-अग्नि, सूर्य-ताप से मणि व दर्पण में उत्पन्न होने वाली अग्नि आदि अनेक प्रकार की अग्नि होती है। आगमों में आग की सात लाख योनियाँ व सात लाख कुल कोटि कही गई है। इसका समर्थन आधुनिक विज्ञान से होता है। वैज्ञानिक अग्नि के अगणित प्रकार स्वीकार करते हैं और इनका वर्गीकरण चार मुख्य भागों में किया जाता है-(1) कागज और लकड़ी आदि में लगने वाली आग, (2) आग्नेय तरल पदार्थों और गैस की आग, (3) विद्युत् तारों में लगने वाली आग और (4) ज्वलनशील धातु-ताँबा, सोडियम और मैग्नेशियम में लगने वाली आग। अग्नि के प्रकारों की भिन्नता इससे स्पष्ट प्रकट होती है कि अग्नि को प्रज्वलित करने वाले कारण अनेक हैं यथा-मौलिक विभिन्न रासायनिक तत्त्वों का मिलना, लकड़ी का पायरोलीसेस, पानी क्रिया, रेडियेशन हीट-ट्रांसफर, पवन प्रंसग आदि। आग के प्रकारों की भिन्नता के कारण ही प्रत्येक प्रकार की आग बुझाने के लिए उपाय भी भिन्नभिन्न काम में लिए जाते हैं। यदि एक आग पर आग बुझाने के दूसरे उपाय का व्यवहार किया जाय तो आग बुझने के बजाय और भी अधिक
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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