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________________ अप्काय 49 मिलकर बनती हैं।'' अर्थात् जल की एक बूंद में लाखों मेघ बूंद व एक मेघ बूंद में करोड़ों वाष्प-कण होते हैं। वाष्प जल की ही पर्याय या रूपांतर है। इस दृष्टि से जल की एक बूंद में खरबों-नीलों वाष्प-कण व असंख्य जीव होते हैं। सामान्य व्यक्ति जल का वर्ण एक-सा देखकर सब जलों को एक ही प्रकार का मानते हैं, उनमें भेद नहीं करते हैं। परंतु आगम ऐसा नहीं मानते हैं। आगमों में जैसे प्राकृतिक रूप में पाये जाने वाले पार्थिवी पदार्थ मिट्टी, लोहा, कोयला, ताँबा, अभ्रक आदि पृथ्वीकाय के जीवों के अनेक प्रकार कहे हैं, उसी प्रकार प्राकृतिक रूप में जाने वाले जलीय पदार्थ भी अनेक प्रकार से कहे गये हैं यथा “ओसा, हिमए, महिया, करए, हरतणुए, सुद्धोदए, सीओदए, उसिणोदए, खारोदए, खट्टोदए, अंबिलोदए, लवणोदए, वारूणोदए, खीरोदए, घओदए, खोओदए, रसोदए, जे यावण्णे तहप्पगारा।" -पन्नवणा प्रथम-पद, सूत्र 20 अर्थात् ओस, हिम, धुंअर, ओले, हरितनु जल, शुद्ध जल, शीतजल, उष्णजल, खाराजल, मीठाजल, लवणीयजल, वरुणजल, क्षीरजल, घृतजल, पुष्करजल, रस (इक्षु) जल आदि जल के अनेक प्रकार कहे गये हैं। जल की योनियों की संख्या सात लाख बताई गई है। आधुनिक विज्ञान भी जल मात्र को एक समान न मानकर अनेक प्रकार का मानता है-शुद्धजल, भारीजल, लवणीय जल, गंधकीय जल आदि। अनुसंधानों के आधार पर शुद्धजल की विशेषता इस प्रकार प्रकट 1. नवनीत, सितम्बर 1955, पृष्ठ 43-44
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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