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________________ विज्ञान का विवेचन अपितु 'ज्ञान' की समीचीनता या सम्यक्ता विज्ञान है। ऐसे विशिष्ट ज्ञान का मात्र संग्रह करने से सुंदर सरस और सुखद जीवन का निर्माण नहीं होता है। तारों का संग्रह करने मात्र से वीणा का निर्माण नहीं होता है। वीणा का निर्माण होता है, तारों की सम्यक् स्थापना व सामञ्जस्य से। यदि तार उचित स्थान पर स्थित नहीं हैं तो उनसे संगीत नहीं, विसंगति ही उत्पन्न होती है और विसंगति से कोई लाभ नहीं। जैसे तारों की पारस्परिक सम्यक् संगति ही संगीत का मधुर स्वर झंकृत करती है, जो जीवन को रसमय बना देती है। उसी प्रकार ज्ञान सम्यक् रूप धारण न करे तो उससे जीवन में संगीत नहीं विसंगति ही उत्पन्न होती है। जीवन में यही विसंगति समस्त विसंगतियों का कारण है। ज्ञान के सम्यक्त्व में ही सरस संगीत झंकृत होता है। यही संगीत समस्त असंगतियों का परिहार कर जीवन को रसमय और आनंदित बनाता है। आज ज्ञान (भौतिक विज्ञान) का विस्तार तो बहुत बढ़ रहा है परंतु जीवन में विकास नहीं हो रहा है। जीवन में जड़ता-पाशविकता बढ़ रही है, चिन्मयता, सात्त्विकता व दिव्यता घट रही है। ज्ञान वृद्धि की धुन में मानव, जीवन के लक्ष्य को ही भूल गया है। आज के मानव की दृष्टि जीवन को समुन्नत बनाने वाले सम्यग्ज्ञान से हटकर भौतिक ज्ञान के विशेषीकरण (specialisation) पर अटक गई है। इस विशेषीकरण के कारण विचारों का विस्तार तो बढ़ा, परंतु प्रज्ञा की अवज्ञा हुई है। शास्त्र ज्ञान की वह मूल भूमिका ही बह चली जिस पर जीवन भवन का निर्माण होता है। जीवन की उपेक्षा करने वाले विज्ञान के जल की इस बाढ़ ने मानव-मस्तिष्क को अपने में डुबो लिया है। परिणामस्वरूप मानव अपनी ही प्रजाति व जीवन के विनाश करने वाले अणु-परमाणु
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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