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________________ 24 जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य संज्ञी-असंज्ञी-जैनदर्शन में मन वाले जीव संज्ञी कहलाते हैं और जिनके मन नहीं वे जीव असंज्ञी कहलाते हैं। सूक्ष्म और बादर एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जीवों के अपर्याप्ता और पर्याप्ता जीव असंज्ञी ही होते हैं। पंचेन्द्रिय जीव असंज्ञी और संज्ञी दोनों प्रकार के होते हैं। इनमें संज्ञी पंचेन्द्रिय का अपर्याप्ता और पर्याप्ता जीव संज्ञी है। शेष बारह प्रकार के जीव असंज्ञी है। पर्याप्ता और अपर्याप्ता-पर्याप्ति: नाम शक्तिः। अर्थात् वह विशेष शक्ति जिससे जीव पुद्गल को ग्रहण करके उन्हें आहार, शरीर, इन्द्रिय आदि रूपों में परिणत करता है, पर्याप्ति कही जाती है। पर्याप्ति 6 हैंआहार सरीरिन्दिय-पज्जती-आण-पाण-भास-मणे। अर्थात् 1. आहार पर्याप्ति, 2. शरीर पर्याप्ति, 3. इन्द्रिय पर्याप्ति, 4. श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति, 5. भाषा पर्याप्ति और 6. मन पर्याप्ति ये 6 पर्याप्तियाँ हैं। उपर्युक्त पर्याप्तियों में पहले की चार पर्याप्तियाँ एकेन्द्रिय जीव में मिलती है। छ: ही पर्याप्तियाँ केवल संज्ञी पंचेन्द्रिय में मिलती है। शेष पाँच पर्याप्ति द्वीन्द्रिय से असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में मिलती है। जिस जीव में जितनी पर्याप्ति होनी चाहिए जब तक उतनी पर्याप्ति पूर्ण नहीं कर पाता है, तब तक उसे अपर्याप्त कहते हैं। जब जीव अपने प्राप्त करने योग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण कर लेता है, तब वह जीव पर्याप्त कहा जाता है। जीव के लक्षण नाणं च दसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा। वीरियं उवओगो य, एयं जीवस्स लक्खणं। -उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन 28, गाथा 11
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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