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________________ 16 जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य कामना के अभाव में है, निर्विकल्पता में है। निर्विकल्पता या दर्शन गुण ही चेतना का मुख्य गुण है। निर्विकल्प स्थिति और निर्विकल्प अनुभूति (बोध) का अन्तर निर्विकल्प स्थिति और निर्विकल्प अनुभूति में बहुत अन्तर है। स्थिति रूप निर्विकल्पता अनेक प्रकार से आती है, यथा-1. निद्रा 2. जड़ता 3. मूर्छा 4. भोग्य पदार्थों की अज्ञानता 5. असमर्थता आदि कारण मुख्य हैं। 1. निद्रा से चित्त शांत-निर्विकल्प हो जाता है, ऐसी निर्विकल्पता जनित शान्ति हम सबको निद्रा में प्रतिदिन होती है। 2. दवा के या इंजेक्शन के प्रभाव से शरीर के किसी अंग या पूरे शरीर को या मस्तिष्क को शून्य (सुन्न) कर देने से उसमें जड़ता आ जाती है। फिर उससे संबंधित विकल्प नहीं उठते हैं, ऐसी स्थिति अस्पताल में अनेक रोगियों में देखी जा सकती है। 3. वेदना या दर्द की अधिकता से असह्य स्थिति होने पर बेहोशी-मूर्छा आ जाती है। इससे भी निर्विकल्प-शान्ति की ही स्थिति आती है। 4. जब व्यक्ति या प्राणी को इन्द्रिय के भोग्य पदार्थों का ज्ञान या जानकारी नहीं होती है तो उसमें उन पदार्थों को पाने की कामना नहीं उठती है, उससे तत्सम्बन्धी विकल्प पैदा नहीं होते हैं। जैसे-अकबर और सम्राट अशोक के युग में रेडियो, टेलीविजन, कार, वायुयान, मोबाईल पाने का संकल्प-विकल्प किसी के मन में नहीं उठता था। उस विकल्प के नहीं उठने से तत्सम्बन्धी कामना या अशान्ति किसी के मन में नहीं होती थी। जबकि आज एक गरीब भिखारी का चित्त भी मोबाईल के न मिलने के कारण अशान्त देखा जाता है। आशय यह है कि जो भोग्य पदार्थों के विषय में जितना कम जानता है, अनजान है, उसके उतनी ही कामनाएँ व विकल्प कम उठते हैं, उसकी अशान्ति में उतनी कमी होती है। मनुष्य से पशुओं का चित्त इसी कारण अधिक शान्त
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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