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________________ 274 जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य चलती हैं। सूर्य से निकली इन्हीं प्रकाश और ताप की सहवासी किरणों को धूप या आतप कहा जाता है, जिसका अर्थ है उष्णतायुक्त प्रकाश, परंतु जैनदर्शन में आतप शब्द का अर्थ सूर्य की धूप में संकुचित न होकर विस्तृत अर्थ का द्योतक है जिसे वैज्ञानिक भाषा में ताप कहा जाता है। यदि यह न माना जाय तो ऊर्जा रूप में जो ताप की किरणें हैं उनका समावेश पुद्गल की किसी पर्याय में करें, यह प्रश्न उपस्थित हो जायेगा। जैनदर्शन में अग्नि को आतप नहीं माना है व धूप को आतप माना है। इससे भी इस बात की पुष्टि होती है कि वस्तु में रही हुई उष्णता वस्तु या द्रव्य का गुण है और उष्णता का वस्तु से अलग अस्तित्व वस्तु या द्रव्य की पर्याय रूप में है। आग रूप लकड़ी, कोयला आदि ईंधनों की उष्णता कोयला आदि वस्तुओं का उष्ण गुण (तापमान) है। यह आतप नहीं है। आतप है आग की आँच (ताप), जो आग्नेय पदार्थ से पैदा होकर चारों ओर फैलती है और जिसका अनुभव आग से दूर बैठा व्यक्ति करता है। यह ताप आग से निकला है फिर भी इसका उसी प्रकार भिन्न अस्तित्व है, जिस प्रकार सूर्य से निकले प्रकाश या ताप का सूर्य से भिन्न अस्तित्व है। ताप या धूप भिन्न होने से हो उसका स्थानान्तरण होता है। अत: वह पर्याय है। गुण पदार्थ से अभिन्न होता है, वह पदार्थ से कभी भिन्न नहीं हो सकता। पुद्गल के उष्णगुण व आतप पर्याय के इतने सूक्ष्म भेद को आज से अढ़ाई हजार वर्ष पूर्व बतला देना अतिशय ज्ञान का ही द्योतक है। अभिप्राय यह है कि उष्णता के दो रूप देखे जाते हैं-एक पदार्थ के साथ अनिवार्य रूप से लगा हुआ रूप, जिसे उस वस्तु का तापमान कहा जाता है। यह तापमान रूप उष्णता उस वस्तु का गुण है। उष्णता का दूसरा रूप ताप-ऊर्जा के स्वतन्त्र अस्तित्व के रूप में मिलता है। इसे
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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