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________________ पुद्गल की विशिष्ट पर्यायें 257 मानव-निर्मित वाद्य यंत्रों के अतिरिक्त प्राकृतिक रूप से भी अजीब-अजीब अजीव-ध्वनियाँ सुनाई देती है । उसमें कुछ का वर्णन यहाँ किया जा रहा है। रेत का गीत - रेगिस्तान में बालू के टीलों से बड़ी अद्भुत ध्वनियाँ सुनाई पड़ती है। इस संबंध में रेगिस्तान में यात्रा करने वाले यात्रियों के वर्णन बड़े ही कुतूहलजनक हैं। बर्ट्राम टामस व जान फिलबाय लिखते हैं कि वे और उनका दल अरब के मरुस्थल में ऊँचे-ऊँचे बालू के टीलों से होकर जा रहा था। तभी उन्हें संगीत जैसा एक पंचम स्वर वाला राग सुनाई पड़ा। कर्नल लेंस फोर्थ ने सीवा के दक्षिण में विशालकाय बालू के टीलों का वर्णन करते हुए लिखा है- “सारे दिन पछुआ वायु बहने के बाद हवा से रेत संचित होकर चाकू की धार जैसे शिखर बन जाते हैं और जब यह रेत खिसकने लगती है तब उसके कणों की रगड़ से ऐसी ध्वनि होने लगती है जैसे दूर कहीं पर बिजली कड़क रही हो । " आरेल स्टाइन का लिखना है कि गोबी के मरुस्थल में 'टकला माकान' अंचल के पश्चिम की ओर 'अदांग पादशा' नामक क्षेत्र है। इस पूरे ही क्षेत्र में ध्वनिमय बालू फैली हुई है, जिससे विचित्र ध्वनियाँ निकलती हैं। इजराइल के समीप सिनाई अंचल की बालुका भी ध्वनिमय है । यहाँ के सिनाई पर्वत का नाम ही पड़ गया है 'बेल माउंटेन' अर्थात् घण्टा पर्वत। इसके विषय में लैफ्टिनेंट न्यूबोल्ड लिखते हैं कि पहले मंद और अस्पष्ट ध्वनि सुनाई पड़ती थी। फिर वह दूर से सुनाई देने वाली गंभीर सुरीली आवाज-सी लगती है। इसके बाद धीरे-धीरे वही आवाज गिरजाघर में घनघनाते घण्टे की-सी सुनाई देने लगती है।
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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