SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 266
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुद्गल द्रव्य 249 के लिए विकसित विज्ञान का सहारा अधिक उपयोगी होगा। यथा-रेडियो, वायरलैस, टेलीपैथी आदि के आविष्कारों से यह सिद्ध हो गया है कि विद्युत् व मानसिक तरंगों के अनन्तानन्त पटल सम्पूर्ण संसार में व्याप्त हैं, कोई भी स्थान इनसे रिक्त नहीं है, तब ही तो विश्व के किसी भी कोने में स्थित रेडियो यंत्र व मानव मस्तिष्क से उनका ग्रहण होता है। सम्पूर्ण संसार में व्याप्त होने से वे अनन्तान्त तरंगे आकाश के प्रत्येक प्रदेश में ही व्याप्त हैं। तथा यह विज्ञान सम्मत तथ्य है कि तरंगें या शक्ति (Matter) का ही एक रूप है। अत: प्रत्येक आकाश प्रदेश में अनन्त पुद्गल परमाणु समाहित हैं, यह स्वतः सिद्ध हो जाता है। यह तो पुद्गल-परमाणु की अवगाहन शक्ति की निविड़ता या सघनता के विलक्षण स्वभाव की विवेचना है। पुद्गल-स्कंधों की सूक्ष्मता भी इससे कम विलक्षण नहीं है। कम से कम दो परमाणु से लेकर अनन्त परमाणु तक के एकीभूत द्रव्य स्कंध ही कहलाते हैं। वस्त्र, पात्र, जल, स्थल, दवा, हवा आदि विश्व के समस्त पदार्थ जो चक्षु आदि इन्द्रियों से ग्राह्य हैं, रूपी हैं, सब स्कंध ही हैं। और ये सब अनंत परमाणुओं के समवाय रूप हैं। एक परमाणु को कभी भी दूसरे परमाणु से अलग नहीं किया जा सकता है, अत: भेदन या तोड़ने की क्रिया स्कन्ध में ही संभव है। किसी पदार्थ के स्कंध को हम तोड़ते जायें तो उसका छोटे से छोटा टुकड़ा भी स्कंध ही होगा। इस प्रकार एक स्कंध विभाजित किये जाने पर असंख्य स्कंध बन जाते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि एक स्कंध असंख्य स्कंधों का समवाय है। आधुनिक विज्ञान भी जैनदर्शन में कथित स्कंधों की इस सूक्ष्मता का समर्थन करता है। 000
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy