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________________ 234 जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य पदार्थों की सुगंध और सुगंध के पदार्थ जैनदर्शन में गंध को भी वर्ण (रंग) के ही समान पुद्गल का एक परिणाम माना गया है। जिस प्रकार किसी भी वस्तु को प्रयत्न द्वारा किसी रंग में रंगा जा सकता है उसी प्रकार प्रत्येक वस्तु को प्रयत्न के द्वारा किसी भी गंध से वासित किया जा सकता है। वर्तमान में वैज्ञानिकों ने इस तथ्य को पा लिया है। उन्होंने इसी तथ्य से कोलतार जैसी वस्तु से भी सुगंध के घटक प्राप्त करने और उन्हें वांछित रूप से मिश्रित करके अनेक उच्चस्तरीय सुगंधियाँ बनाने में सफलता प्राप्त कर ली है। यही नहीं, कस्तूरी जैसी दुर्लभ सुगंधित वस्तु भी प्रयोगशाला में कृत्रिम रूप से बनाई जाने लगी है और यह कृत्रिम कस्तूरी असली कस्तूरी से गुण में किसी प्रकार कम सिद्ध नहीं हुई है। आज के वैज्ञानिकों को सुगंध प्राप्त करने के लिए प्राकृतिक फूलों की आवश्यकता नहीं है। रासायनिक पदार्थों की सहायता से वे फूलों का इत्र तैयार कर सकते हैं तथा उन्होंने कुछ ऐसी सुगंधियाँ भी तैयार की हैं जो प्रकृति में कहीं नहीं पाई जाती हैं। सुगंधित मोमबत्तियाँ-आज रसायनशास्त्री ऐसी मोमबत्तियाँ बनाने के लिए प्रयत्नशील हैं जो धीमे प्रकाश के साथ भीनी-भीनी सुगंध भी दें। ऐसी मोमबत्तियाँ कभी की बन गई होती परंतु बात यहाँ आकर रुकी है कि ऐसी मोमबत्तियाँ सुगंध को बिखेरती हैं लेकिन साथ ही ताप भी बहुत पैदा करती हैं। इस समस्या को हल कर लिया गया तो ऐसी मोमबत्तियाँ बन जायेगी कि जिन्हें जलाने पर चंदन, चमेली आदि की सुगंध भी आने लगेगी। विदेशों में ईंधन के रूप में काम आने वाले कुछ तेलों व गैसों में सुगंध मिला दी जाती है, जिनको जलाते ही चंदन, गुलाब आदि की सुगंध चारों ओर फैलने लगती है।
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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