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________________ पुद्गल द्रव्य 227 चाँदी, ताँबा, लोहा, वस्त्र, पात्र, धन-धान्य आदि विश्व के समस्त दृश्यमान पदार्थों का निर्माण परमाणुओं के स्निग्ध व रूक्ष गुण के पारस्परिक संयोग का ही परिणाम है, आगम-प्रणेताओं के अतीन्द्रिय ज्ञान को ही परिलक्षित करता है। पुद्गल के वर्णादि गुण द्रव्य, गुण और पर्याय द्रव्यमात्र गुण और पर्याय युक्त होता है। जैनागमों में इस विषय पर विस्तार से विवेचन किया गया है, यथा गुणाणमासओ दव्वं, एगदव्वस्सिया गुणा। लक्खणं पज्जवाणं तु, उभओ अस्सिया भवे।। ___ -उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन 28, गाथा 6 गुणपर्यायवद् द्रव्यम्। -तत्त्वार्थ सूत्र, 5.37 अर्थात् द्रव्य गुणों का आश्रय होता है, गुण भी एक द्रव्य के आश्रित होते हैं किंतु पर्याय, द्रव्य और गुण दोनों के आश्रित होती है। तात्पर्य यह है कि द्रव्य में गुण और पर्याय दोनों होते हैं। चउविहे पोग्गलपरिणामे पन्नत्ते, तं जहा-वण्णपरिणामे, गंध परिणामे, रसपरिणामे, फासपरिणामे। ___ -स्थानांग 4 स्पर्शरसगन्धसवर्णवन्त: पुद्गलाः। -तत्त्वार्थ सूत्र, 5.23 पुद्गल वर्ण, गंध, रस और स्पर्श परिणाम वाले होते हैं अर्थात् ये पुद्गल के गुण हैं। जैन आगमों में वर्ण के मौलिक भेदों का विवेचन करते हुए कहा गया है
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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