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________________ 225 पुद्गल द्रव्य में दो का अंतर होता है उनमें अवश्य बंध होता है। जैसे आठ स्निग्ध गुण युक्त स्कंध का छह या दस स्निग्ध गुण स्कंध के साथ बंध संभव है। (7) 'बन्धेसमाधिकौ पारिणामिकौ। -तत्त्वार्थ सूत्र 5.36 बंध की प्रक्रिया में संघात से उत्पन्न स्निग्ध या रूक्षता में से जो गुण अधिक परिमाण में होता है, नवीन स्कन्ध उसी गुण रूप में परिणत हो जाता है। उदाहरणार्थ-एक स्कंध तीस स्निग्ध गुण युक्त स्कंध और बत्तीस रूक्ष गुण युक्त स्कन्ध बने तो वह नवीन स्कन्ध रूक्ष गुण स्कंध रूप होगा। अथवा तीस अंश वाले स्निग्ध परमाणु के योग से अठाईस अंश वाला स्निग्ध परमाणु तीस अंश वाला हो जाता है। वैज्ञानिक समर्थन-यह बंध प्रक्रिया विज्ञान से मेल खाती है। जैन दार्शनिकों ने जैसे स्निग्धता और रूक्षता को बंध का कारण माना, वैज्ञानिकों ने भी धन विद्युत् (Positive Charge) और ऋण विद्युत् (Negative Charge) इन दो स्वभावों को बंधन का कारण माना है तथा जैसे जैनदर्शन परमाणु मात्र में स्निग्धता और रूक्षता मानता है, आधुनिक विज्ञान भी पदार्थ मात्र में धन विद्युत् तथा ऋण विद्युत् मानता है। इस प्रकार बंधन के विषय में जैन दार्शनिकों और आधुनिक वैज्ञानिकों के कथन में केवल शाब्दिक ही अंतर जाता है। तत्त्वार्थ सूत्र 5.34-'न जघन्य गुणानाम्' की टीका सर्वार्थसिद्धि में आचार्य पूज्यपाद ने आकाश में चमकने वाली विद्युत् 1. नियम नं. 3-4-5-6-7 के लिए प्रज्ञापना परिणाम पद 13 सूत्र 185 द्रष्टव्य है बंधण परिणामे णं भंते! कइविहे पण्णत्तत्ते? गोयमा! दुविहे पण्णते तं जहा-णिद्ध बंधणपरिणामे लुक्ख बंधण परिणामे यसमणिद्धयाए बंधो न होइ समलुक्खयाएवि ण होइ। वेमाय णिद्ध लुक्खत्तणेण बंधो उ खंधाणं।1। णिद्धस्स गिद्धेण दुयाहिएणं, लुक्खस्स लुक्खेण दुयाहिएणं। निद्धस्स लुक्खेण उवेइ बंधो, जहण्णवज्जो विसमो समो वा।।2।।
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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