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________________ 216 जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य न्यूट्रोनों के कण वास्तव में अलग-अलग नहीं हैं बल्कि एक ही कण (जिसे न्युक्लियन कहते हैं) के दो रूप हैं।' कुछ समय पूर्व ही विज्ञान-जगत् में अणु के नये घटक, ‘एक जीरो' का पता चला है। इससे अणु रचना के संबंध में नया विचार सामने आया है कि अणु के अलग-अलग मौलिक घटक नहीं है। एक ही मौलिक घटक अवस्थांतर से विभिन्न रूप ग्रहण करता है। अत: यह कहा जा सकता है कि आधुनिक विज्ञान, जैनदर्शन में प्रतिपादित इस सिद्धांत का पूर्ण समर्थन करता है कि विश्व के समस्त भौतिक पदार्थों का मूल उपकरण या उपादान एक ही तत्त्व है, जिसे परमाणु कहा जाता है। जैनदर्शन के अनुसार अच्छेद्य, अभेद्य, अग्राह्य और अविभागी पुद्गल को परमाणु कहा जाता है। आधुनिक विज्ञान के छात्र को परमाणु की इस परिभाषा में संदेह हो सकता है, कारण कि वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा परमाणु के कलेवर में स्थित कणों को अलग किया जा सकता है जैसा कि पारा के परमाणु में से तीन इलेक्ट्रोन को अलग कर उसे सोने में परिणत कर दिया गया। अणु-भेदन में भी यही क्रिया चलती है, अत: परमाणु की अविभाज्यता अब सुरक्षित नहीं रही है। परमाणु अगर अविभाज्य न हो तो वह परमाणु नहीं कहला सकता और यह भी सही है कि विज्ञान सम्मत्त परमाणु टूटता है। इस समस्या का समाधान जैनदर्शन में उपलब्ध है। जैन ग्रन्थ अनुयोग द्वार' में परमाणु का वर्णन करते हुए कहा है 1. नवनीत, मई 1962, पृष्ठ 72 2. नवनीत, जुलाई 1963, पृष्ठ 39
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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