SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 164 जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य उष्ण तेजोलेश्या का प्रयोग गोशालक ने भगवान महावीर पर किया था। फलत: भगवान महावीर के दो शिष्य भस्म हो गये और स्वयं सर्वसमर्थ भगवान महावीर को भी अतिसार रोग हो गया जिससे भगवान महावीर छ: मास तक पीड़ित रहे। इस शक्ति के प्रयोग के विषय में श्रमण कालोदायी भगवान महावीर से पूछता है और भगवान सविस्तार उत्तर देते हैं-अहो कालोदायि! क्रुद्ध अनगार से तेजोलेश्या निकलकर दूर गई हुई दूर गिरती है, पास गई हुई पास में गिरती है। वह तेजोलेश्या जहाँ गिरती है, वहाँ उसके अचित्त पुद्गल प्रकाश करते यावत् तपते हैं। उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि तेजोलेश्या एक विद्युतीय शक्ति-सी है। इस विषय में विज्ञान की वर्तमान उपलब्धियों से आश्चर्यजनक समानता मिलती है “विचार शक्ति की परीक्षा करने के लिए डॉक्टर वेरडुक ने एक यंत्र तैयार किया है। एक काँच के पात्र में सुई के सदृश एक महीन तार लगाया है और मन को एकाग्र करके थोड़ी देर तक विचार-शक्ति निर्बल हो तो उसमें कुछ भी हलचल नहीं होती। विचार-शक्ति की गति बिजली से भी तीव्र है। पृथ्वी के एक कोने से दूसरे कोने तक एक सैकेंड के 16वें भाग में 12,000 मील तक विचार जा सकता है।" विचार के समय मस्तिष्क में विद्युत् उत्पन्न होती है और उसका असर भी मिकनातीसी सुई द्वारा नापा गया है। जिस प्रकार यंत्रों द्वारा विद्युत् तरंगों का प्रसारण और ग्रहण होता है और रेडियो, टेलीग्राम, टेलीफोन, टेलीप्रिंटर, टेलीविजन आदि उस विद्युत् को मानव के लिए उपयोगी व लाभप्रद साधन बना देते हैं, उसी प्रकार विचार-विद्युत् की लहरों का भी 1. कुद्धस्स अणगारस्स तेउलेस्सा निसडढासमाणी दूर गंता दूरं निपतइ, देसं गंता देसं निपतइ, तहिं तहिं तं जे अचित्ता वि पोग्गला ओगासंति जाव पभासंति। -भगवती शतक 15 2. देखिये, ‘संकल्पसिद्धि' अध्याय विचार शक्ति।
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy