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________________ त्रसकाय 149 काँटे फैलाकर शत्रु के शरीर में घुसते ही ये काँटे साही के शरीर से सहज ही में अलग हो जाते हैं और शत्रु भयंकर पीड़ा से कराहता खड़ा का खड़ा रह जाता है। यदि सिंह भी साही से लड़ने आये तो यह सही है कि सिंह ही हारे, साही नहीं। इसके लिये काँटे कवच का काम करते हैं। राडार मछली-युद्ध क्षेत्र में राडार का बड़ा महत्त्व है, परंतु चमगादड़ इसका उपयोग प्रकृति से ही कर रहा है। उसके कान के नीचे एक छेद होता है जो प्रतिध्वनि को ग्रहण करता है। जिससे उसको घोर अंधकार में भी स्थित वृक्ष व वस्तुओं के अस्तित्व का बिना देखे ही ज्ञान होता है और वह उनसे टकराने से अपने को बचा लेता है। डॉल्फिन मछली भी अपने शरीर से ध्वनि की लहरें निकालती है। ये लहरें समुद्र में स्थित दूसरे जीवों से टकराकर वापस आती हैं, जिससे डॉल्फिन जान लेती है कि उसके निकटवर्ती क्षेत्र में उसके कौनसे शत्रु-मित्र हैं। टेलीफोन-खरगोश-पशु टेलीफोन का भी उपयोग करते हैं। काटन टेल (खरगोश) अपने शत्रु को देखते ही पिछली टाँगें भूमि पर जोर-जोर से मारने लगता है, जिससे ध्वनि निकलती है जो भूमि के भीतर चारों तरफ फैल जाती है। जिससे दूसरे खरगोशों को संकट की जानकारी मिल जाती है, इस प्राकृतिक टेली से प्रसारित संदेश को सुनकर अन्य पशु भी सावधान हो जाते हैं। जेट-झींगा-सुरक्षा में जेट वायुयान का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस वायुयान में प्रयुक्त सिद्धांत ‘सी ऐरो' जीव अपनी सुरक्षा के लिए उपयोग करते हैं। यह झींगे से मिलती-जुलती आकृति का समुद्री जीव है, जो अपने शरीर के पिछले भाग में बहुत-सा जल भर लेता है तथा शत्रु से बचने या शिकार को पकड़ने के लिए अपने पूरे शरीर को जोर से दबाता
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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