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________________ वनस्पति में संवेदनशीलता 143 उद्योत नामकर्म-जैनागमों में वनस्पति में उद्योतनाम कर्म का उदय माना है। अर्थात् वनस्पति को प्रकाशमान भी माना है। ऐसे वृक्ष आज भी यत्र-तत्र मिलते हैं जो प्रकाशयुक्त होते हैं। अमेरिका के तिवाड़ी प्रान्त की बस्ती में सात फीट ऊँचा वृक्ष है, जिसे ‘राकी' कहते हैं। यह एक मील तक रोशनी देता है जिसमें बारीक से बारीक अक्षर पढ़े जा सकते हैं। सागरीय वनस्पतियाँ-आगमों में जल में जन्म लेने वाली वनस्पतियों का विस्तार से वर्णन है। वनस्पति विशेषज्ञों ने शोध करके पता लगाया है कि "धरती पर जितने घने जंगल हैं समुद्र में उससे कम घने जंगल नहीं हैं। यह बात अजीब सी लगती है, लेकिन सत्य है। समुद्र में पर्वत है, घाटियाँ हैं और संकरी नहरे हैं। वहाँ पौधों के अनेक समूह हैं, पर ये आज भी अपनी पुरानी ही अवस्था में हैं। इनकी जड़ें नहीं है और इनमें पुनरुत्पादन बीज द्वारा नहीं होता, लेकिन अपवाद रूप में कुछ पौधे ऐसे भी हैं-ईलग्रास (Eelgrass) ऐसा ही उदाहरण है।" __वनस्पति की निर्जीवता-जैनग्रन्थों में वनस्पति जिन कारणों से निर्जीव होती है, वे इस प्रकार हैं सुक्कं पक्कं तत्तं अंबिल लवणेण मिस्सअं दव्वं। जं जंतेण य छिण्णं तं सव्वं फासुअं भणि।। अर्थात् वनस्पति सुखाने, पकाने, तपाने, खटाई तथा लवण मिलाने, यन्त्र द्वारा छेदने से प्रासुक (जीव रहित) हो जाती है। आधुनिक वैज्ञानिक भी वनस्पति को निर्जीव करने के लिए उबालना आदि उपयुक्त क्रियाओं या उपायों का ही उपयोग करते हैं। इस प्रकार वे उपर्युक्त गाथा में विहित तथ्य को प्रमाणित करते हैं। 1. विज्ञानलोक, जुलाई 1966
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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