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________________ 136 जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य को भीतर पहुँचा देना। पेड़ों में यह कार्य उनकी त्वचा करती है। इनकी त्वचा के ऊपरी भाग पर जो बिन्दू सदृश छोटे-छोटे कोश होते हैं, उनमें से बहुतों में एक प्रकार का तरल पदार्थ भरा रहता है। इसी तरल पदार्थ की सहायता से वृक्ष बाहरी पदार्थों की उपस्थिति का अनुभव करते हैं।' आशय यह है कि वैज्ञानिक वनस्पति में उनकी त्वचा (स्पर्शनेन्द्रिय) से देखने की शक्ति को स्वीकार करते हैं और वनस्पति में यह शक्ति उसी प्रकार अधिक तीव्र होती है जिस प्रकार मानव की किसी इन्द्रिय की शक्ति का नाश हो जाने पर उसकी अन्य इन्द्रियों में अधिक क्षमता आ जाती है। उदाहरणार्थ आँखों के चले जाने पर अंधे व्यक्ति की श्रवण आदि इन्द्रियों की शक्ति तीव्र हो जाती है। लेश्या ___“कषायानुरंजिता योगप्रवृत्ति: लेश्या" अर्थात् कषाय युक्त मन, वचन एवं काया की प्रवृत्ति को लेश्या कहा गया है। लेश्या के छह भेद हैं-(1) कृष्ण लेश्या (2) नील लेश्या (3) कापोत लेश्या (4) तेजो लेश्या (5) पद्म लेश्या और (6) शुक्ल लेश्या। ___ एगिंदियाणं भंते ! कइ लेस्साओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! चत्तारि लेस्साओ पण्णत्ताओ, तं जहा-कण्हलेस्सा जाव तेउलेस्सा। पुढविकाइयाणं भंते! कइ लेस्साओ पण्णत्ताओ ! गोयमा ! एवं चेव, आउवणस्सइकाइयाणवि एवं चेव। -पन्नवणा पद 17, उद्देशक 2 अर्थात् एकेन्द्रिय पृथ्वी, जल और वनस्पतिकाय में कृष्ण, नील, कापोत और तेजस् ये चार लेश्याएँ पायी जाती हैं। 1. नवनीत, दिसम्बर 1962 2. धवला टीका, प्रथम खण्ड, प्रथम पुस्तक
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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