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________________ वनस्पति में संवेदनशीलता उपयोग 131 'उपयोग' शब्द जैनागम में अपने विशेष पारिभाषिक अर्थ में प्रयुक्त होता है जिसके अंतराल में ज्ञान और दर्शन समाहित हैं। उपयोग का वर्णन पन्नवणा सूत्र में इस प्रकार है कइविहे णं भंते! उवओगे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे उवओगे पण्णत्ते, तं जहा-सागारोवओगे य अणागारोवओगे य ।। - पन्नवणासूत्र, पद 29, सूत्र 1 गौतम गणधर श्री महावीर प्रभु से पूछते हैं- भगवन् ! उपयोग कितने प्रकार के हैं ? भगवान कहते हैं - गौतम ! उपयोग दो प्रकार के हैं - साकार उपयोग (ज्ञान) और अनाकार उपयोग (दर्शन) । पुढविकाइयाण भंते ! सागरोवओगे कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते तं जहा-मइअण्णाण - सागारोवओगे, सुयअण्णाण - सागारोवओगे य एवं जाव वणस्सकाइयाणं। - पन्नवणा, पद 29.3 प्रश्न- हे भगवन् ! पृथ्वीकाय में साकार उपयोग कितने प्रकार का है ? उत्तर-गौतम ! पृथ्वीकाय से लेकर वनस्पतिकाय पर्यंत मति अज्ञान और श्रुत अज्ञान यह दो प्रकार का साकारोपयोग है। अज्ञान से प्रकृत में अभिप्राय ज्ञान रहित अवस्था न होकर असम्यक् या असमीचीन ज्ञान है। जैनदर्शन ने सम्यग्दृष्टि प्राणियों को छोड़कर शेष सभी में अज्ञान रूप असम्यग्ज्ञान ही माना है । मतिश्रुत ज्ञान-जिसके द्वारा पदार्थ का स्वरूप जाना जाय उसे ज्ञान कहते हैं। जैनदर्शन वनस्पति में ज्ञान के केवल दो भेद मतिज्ञान और श्रुतज्ञान मानता है। पदार्थ के अभिमुख होने पर अर्थात् पदार्थ की उपस्थिति में इन्द्रिय और मन के माध्यम से होने वाला सामान्य विशेष अवबोध मति और श्रुतज्ञान कहा जाता है । इन दोनों में घनिष्ठ संबंध है, यथा
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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