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________________ जीव- अजीव तत्त्व एवं द्रव्य अर्थात् शरीर द्वारा लिया जाने वाला आहार ओजाहार है। त्वचा रोमों के द्वारा स्पर्शपूर्वक लिया जाने वाला आहार रोमाहार है तथा कवल (ग्रास) रूप में मुख द्वारा लिया जाने वाला आहार प्रक्षेपाहार है । ' इनमें से वनस्पति में दो आहार- ओजाहार और रोमाहार ही माने गये हैं। 2 आधुनिक विज्ञान भी वनस्पति में दो प्रकार की आहारक्रिया मानता हैऐसीमिलेशन और आसमोसिस । एसीमिलेशन की ओजाहार से और आसमोसिस की रोमाहार से तुलना की जा सकती है। वनस्पति विज्ञान में आहार की इन दोनों क्रियाओं पर हजारों ग्रंथ लिखे हुए हैं। इन क्रियाओं को संक्षेप में इस प्रकार समझा जा सकता है 100 ओजाहार - आहार की इस क्रिया में पौधे अपनी पत्तियों, शाखाओं आदि शरीर के समस्त हरे भाग (पर्णशाद ) द्वारा वायुमण्डल में से कार्बनडॉइ-ऑक्साइड आदि गैसों को सोखते हैं । फिर वे शोषित पदार्थ स्टोमटा द्वारा जड़ों से आये भोजन के जलीय भाग में घुल जाते हैं। तदनन्तर प्रकाश-संश्लेषण क्रिया द्वारा इसमें रासायनिक प्रक्रिया होती है जिससे शक्कर बनती है। इसी शक्कर का कुछ भाग स्टॉर्च में व कुछ भाग कार्बोहाइड्रेट में बदल जाता है व कुछ भाग प्रोटीन बनता है । रोमाहार - आहार की इस क्रिया में पौधे मूल (जड़) रोमों द्वारा जमीन से जल तथा सोडियम, फासफोरिस एसिड, पोटास आदि खनिज पदार्थों का घोल सोखते हैं। वह घोल जाइलम नलियों द्वारा तने की तरफ जाता है जहाँ वह पौधे के द्वारा ओजाहार के रूप में लिये गये कार्बनडाइ-ऑक्साइड आदि पदार्थों से मिलता है । फिर इन दोनों आहार की प्रक्रियाओं द्वारा तैयार हुए पदार्थों का मिश्रण रासायनिक प्रक्रिया द्वारा 1. भगवती सूत्र प्रथम खण्ड, पृष्ठ 94 (पं. बेचरदासजी कृत अनुवाद का हिन्दी रूपांतर) 2. देखिये - पन्नवणा पद 28, उद्देशक 1
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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