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________________ 64] [दशवैकालिक सूत्र हिन्दी पद्यानुवाद कैसे चले खड़ा हो कैसे? कैसे बैठे और शयन करे? कैसे खाते भाषण करते, ना पाप कर्म का बन्ध करे? अन्वयार्थ-कहं चरे = कैसे चलें। कहं चिट्टे = कैसे खड़े रहें। कहं आसे = कैसे बैठे। कहं सए = कैसे सोएं । कहं भुंजतो = कैसे भोजन करें और । भासंतो = कैसे भाषण करें। पावकम्मं न बंधइ = ताकि पाप कर्म का बन्ध नहीं हो। __ भावार्थ-अयतना से चलने, फिरने, बैठने, खड़े रहने, सोने, बोलने और खाने से जीवों की हिंसा होती है। तब शिष्य पूछता है-“भगवन् ! फिर अहिंसा व्रती को कैसे चलना, कैसे खड़े रहना, कैसे बैठना, कैसे सोना, कैसे बोलना और कैसे भोजन करना चाहिये जिससे अहिंसाव्रत सुरक्षित रहे और पापकर्म का बन्ध नहीं हो?' शिष्य की इस जिज्ञासा का शास्त्रकार स्वयं उत्तर देते हुए कहते हैं जयं चरे जयं चिट्टे, जयमासे जयं सए। जयं भुंजतो भासंतो, पावकम्मं न बंधइ ।।8।। हिन्दी पद्यानुवाद यतना से चले खड़ा होवे, यतना से बैठे शयन करे। यतना से खाये बोले तो, ना पाप कर्म का बन्ध करे ।। अन्वयार्थ-जयं चरे = यतना से चले । जयं चिट्टे = यतना से खड़ा रहे । जय मासे = यतना से बैठे। जयं सए = यतना पूर्वक सोए । जयं भुजंतो = यतना पूर्वक खाए और । भासंतो = यतना पूर्वक ही बोले तो । पाव कम्मं न बंधइ = पाप कर्म का बन्ध नहीं होगा। भावार्थ-अयतना जैसे पाप जनक है, वैसे ही यतना पापकर्म से बचाने वाली है। शास्त्र कथित विधि से उपयोग पूर्वक चलना, फिरना, खड़ा रहना, भूमि को देखकर बैठना, आसन देकर यतना से सोना, विधि पूर्वक निर्दोष आहार करना, भाषा समिति की मर्यादा में निर्दोष-शास्त्रानुकूल बोलना यतना है, यतना से उपयोग पूर्वक क्रिया करने से अध्यवसाय शुभ होते हैं, इसलिये पाप कर्म का बन्ध नहीं होता । (यतनापूर्वक क्रिया करते हुए किसी जीव की हिंसा हो भी जाय तो भाव शुभ होने से अशुभ कर्म का बन्ध नहीं होता)। सव्वभूयप्पभूयस्स, सम्मं भूयाइं पासओ। पिहियासवस्स दंतस्स, पावकम्मं न बंधइ।।७।। हिन्दी पद्यानुवाद सब जीवों में आत्म-बुद्धि, एवं सब में समदर्शी हो। आस्रवरोधी दान्त श्रमण के, न पाप कर्म का बन्धन हो ।।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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