SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [दशवैकालिक सूत्र साधु सम्पूर्ण अदत्त का त्यागी होता है । अल्प या बहुत, अणु और स्थूल, सचित्त एवं अि छह प्रकार के अदत्त का ग्रहण मुनि के लिये तीन करण और तीन योग से जीवन भर के लिये वर्जित बतलाया गया है । शिष्य ने प्रतिज्ञा की है कि वह छहों प्रकार के अदत्तादान का तीन करण और तीन योग से जीवन भर के लिये परित्याग करता है। वह सब प्रकार के अदत्तादान की विरति में तत्परता से उपस्थित है । साधु-साध्वी के लिये आवश्यक सूत्र में देव अदत्त 1, गुरु अदत्त 2, राज्य अदत्त 3, गाथापति अदत्त 4 और सहधर्मी अदत्त 5 इन पाँच प्रकार के अदत्त ग्रहण का भी वर्जन किया गया है। 44] अहावरे चउत्थे भंते ! महव्वए मेहुणाओ वेरमणं सव्वं भंते ! मेहुणं पच्चक्खामि, से दिव्वं वा, माणुसं वा, तिरिक्खजोणियं वा, नेव सयं मेहुणं सेविज्जा, नेवन्नेहिं मेहुणं सेवाविज्जा, मेहुणं सेवंते वि अन्ने न समणुजाणिज्जा, जावज्जीवाए तिविहं तिवि मणेणं वायाए काएणं न करेमि, न कारवेमि, करंतं पि अन्नं न समणुजा - णामि । तस् भंते! पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि । चउत्थे भंते ! महव्वए उवट्ठिओमि सव्वाओ मेहुणाओ वेरमणं ।।14।। हिन्दी पद्यानुवाद मैथुन विरमण है व्रत चौथा, मैं तन मन से अपनाता हूँ। हे भदन्त ! सारे मैथुन से, निज मन को दूर हटाता हूँ ।। देव मनुज या तिर्यंचों से, मैथुन सेवन करूँ नहीं । मैथुन कर्म न करूँ न करवाऊँ, अनुमोदन मन धरूँ नहीं ।। तीन करण और तीन योग, मन वचन तथा अपने तन से । करूँ न करवाऊँ मैं मैथुन, अनुमोदन नहीं करूँ मन से ।। करता भदन्त ! मैथुनवर्जन, निन्दा गर्हा भी करता हूँ । मैथुन सेवन के महापाप से, दूर स्वयं को करता हूँ ।। अन्वयार्थ-अहावरे चउत्थे भंते = हे भगवन् ! अब आगे चौथे । महव्वए = महाव्रत में | मेहुणाओ वेरमणं = मैथुन का परित्याग होता है । सव्वं भंते मेहुणं पच्चक्खामि = भगवन् ! मैं सर्वथा मैथुन अर्थात् कुशील का परित्याग करता हूँ । से दिव्वं वा माणुसं वा, तिरिक्खजोणियं वा = चाहे वह मैथुन, देव-सम्बन्धी, मनुष्य - सम्बन्धी, या तिर्यंच - सम्बन्धी हो । नेव सयं मेहुणं सेविज्जा = मैं स्वयं मैथुन सेवन नहीं करूँगा । नेवन्नेहिं मेहुणं.. ..न समणुजाणामि । दूसरों से मैथुन सेवन करवाऊँगा नहीं, मैथुन सेवन करने वाले अन्य को अच्छा भी समझँगा नहीं ।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy