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________________ द्वितीय चूलिका ] [315 = मैं। किं = अपनी किन-किन । खलियं = स्खलनाओं / भूलों को। ण (न) विवज्जयामि = अभी तक नहीं छोड़ सका हूँ और क्यों नहीं छोड़ सका हूँ ? अब मुझे इन सब भूलों को छोड़कर संयम-पालन में सावधान रहना चाहिये। इच्चेव = जो साधु इस प्रकार । सम्मं = सम्यक / अच्छी प्रकार से / तरह से अणुपासमाणो = विचार एवं चिन्तन करता है वह । अणागयं = भविष्य में । णो (नो) पडिबंध कुज्जा = वह फिर किसी प्रकार का दोष नहीं लगा सकता, यानी दोषों से छुटकारा पा जाता है। I भावार्थ-क्या मेरे प्रमाद को कोई दूसरा देखता है अथवा अपनी भूल को मैं स्वयं देख लेता हूँ। वह कौन सी स्खलना है जिसे मैं नहीं छोड़ रहा हूँ। इस प्रकार सम्यक् प्रकार से आत्म-निरीक्षण करता हुआ भविष्य में दोषों से छूट जाता है असंयम में नहीं बंधता व निदान नहीं करता है। जत्थेव पासे कइ दुप्पउत्तं, कारण वाया अदु माणसेणं । तत्थेव धीरो पडिसाहरिज्जा, आइण्णओ खिप्पमिवक्खलीणं ।।14।। हिन्दी पद्यानुवाद हो जहाँ कहीं भी दुष्प्रवृत्त, यह तन मन अपना और वचन । जाने तो वहीं संभल जाये, आगे न बढ़ाये धीर चरण ।। ज्यों जातिमन्त हो अश्व कोई, वल्गा खींचे रुक जाता है । चंचल मन वैसे होते ही, मुनि का मानस झुक जाता है ।। = अन्वयार्थ-इव = जिस प्रकार । आइण्णओ (आइन्नओ) = जातिवान् घोड़ा । क्खलीणं लगाम का संकेत पाते ही विपरीत मार्ग को छोड़कर सन्मार्ग पर चलने लग जाता है उसी प्रकार । धीरो = बुद्धिमान् साधु को चाहिये कि । जत्थेव = जब कभी । कइ = किसी भी स्थान पर । माणसेणं वाया अदु काएण = अपने मन, वचन और काया को । दुप्पउत्तं = पाप कार्य की ओर दुष्प्रवृत्त होते हुए। पासे = देखे तो । खिप्पं = क्षिप्र, तत्काल । तत्थेव = उसी समय । पडिसाहरिज्जा = उनको उस पाप कार्य से खींचकर सन्मार्ग में लगा दे। भावार्थ-जहाँ कहीं भी मन, वचन और काया को दुष्प्रवृत्त होता हुआ देखे, तो धीर साधु वहीं सम्भल जाए। जैसे जातिमान् अश्व लगाम को खींचते ही सम्भल जाता है। जस्सेरिसा जोग जिइंदियस्स, धिईमओ सप्पुरिसस्स णिच्चं । तमाहु लोए पडिबुद्धजीवी, सो जीवई संजमजीविएणं ।।15।। हिन्दी पद्यानुवाद जिस धैर्यशील इन्द्रियजित के, शुचियोग सदा ऐसे होते । प्रतिबुद्ध जीवन वाले वे, निश्चय जग में ऐसे होते ।। जिसका जीवन हो उस प्रकार, वह तपी संयमी कहलाता । संयममय-जीवन वह जीता, और मुक्ति पास में ले आता ।।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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