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________________ 280] [दशवैकालिक सूत्र हिन्दी पद्यानुवाद त्रस स्थावर का वध होता है, पृथ्वी तरु-तृण अवलम्ब जिन्हें। न स्वयं पकाते पकवाते, औद्देशिक त्यागी को भिक्षु कहें।। __ अन्वयार्थ-पुढवी = पृथ्वी । तणकट्ट निस्सियाणं (निस्सिआणं) = तृण, और काष्ठ में रहने वाले। तसथावराण (तसथावराणं) = त्रस और स्थावर जीवों का । वहणं = वध । होइ = होता है। तम्हा = इसलिए । जे = जो । उद्देसियं (उद्देसिअं) = साधक के लिये बनाये गये आहार को । न भुंजे = नहीं खाता । णो वि पए = स्वयं भी न पकाता । न पयावए = नहीं पकवाता । स = वह । भिक्खू = भिक्षु है। भावार्थ-अन्य सम्प्रदायों की तरह जैन साधु स्व-पाकी नहीं होता और न अपने लिये बनाये गये आहार का ही सेवन करता है, क्योंकि भोजन पकाने में पृथ्वी, तृण-जल, कोयले और काष्ठ में रहने वाले अनेक स्थावर जीवों का प्रत्यक्ष वध होता है. इसलिये साध भोजन पकाता नहीं और पकवाता भी नहीं । साध के लिये बनाया गया औद्देशिक भोजन का सेवन-भक्षण भी नहीं करता, वही सच्चा भिक्षु है। औद्देशिक की तरह जैन मुनि आधा कर्मी आहार का भी सेवन नहीं करता, यह जैन भिक्षु का आचार है। रोइअ णायपुत्तवयणे, अत्तसमे मण्णिज्ज छप्पिकाए। पंच य फासे महव्वयाई, पंचासवसंवरे जे स भिक्खू ।।5।। हिन्दी पद्यानुवाद जो वीर वचन में श्रद्धा कर, षटकाय जीव निज सम जाने । है पंच महाव्रत के सेवी, और दान्त भिक्षु उनको माने ।। अन्वयार्थ-जे = जो । णायपुत्तवयणे = ज्ञात पुत्र महावीर के वचनों में। रोइअ = रुचि यानी प्रीतिकर के। छप्पिकाए = छहों काय के जीवों को । अत्तसमे = अपने समान । मण्णिज्ज = मानता है। पंच महव्वयाई = पाँच महाव्रतों का। फासे = सम्यक् रूप से पालन करता है । य = और । पंचासव = पाँच आस्रवों का । संवरे = निरोध करता है। स = वह । भिक्खू = भिक्षु है। भावार्थ-जो वर्तमान धर्म-शासन के अधिपति भगवान महावीर के वचनों में रुचि तथा श्रद्धा रखता है और छहों-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति और त्रस काय के जीवों को आत्मवत् समझता है । पाँच महाव्रत-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का पालन करता है। शब्द रूपादि पाँचों इन्द्रियों के विषयों का तथा मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और अशुभ योग रूप आश्रवों का निरोध करता है, वही भिक्षु है। चत्तारि वमे सया कसाए, धुवजोगी य' हविज्ज बुद्धवयणे । अहणे निज्जायरूवरयए, गिहि जोगं परिवज्जए जे स भिक्खू ।।6।। 1. कई प्रतियों में 'य' नहीं है।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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