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________________ 274] [दशवैकालिक सूत्र चउव्विहा खलु आयारसमाही भवइ । तं जहा- 1. नो इहलोगट्ठयाए आयारमहिट्ठिज्जा, 2. नो परलोगट्ठयाए आयारमहिट्ठिज्जा, 3. नो कित्तिवण्णसद्दसिलोगट्ठयाए आयारमहिट्ठिज्जा, 4. नण्णत्थ आरहंतेहिं हेऊहिं आयारमहिट्ठिज्जा । चउत्थं पयं भवइ। भवइ य इत्थ सिलोगोहिन्दी पद्यानुवाद आचार समाधि के चार भेद, निश्चय होते हैं इस जग में। इस लोक लाभ के हेतु नहीं, आचार शान्ति देता जग में ।। परलोक हेतु भी ना पाले, ना कीर्ति आदि के हित पालें। जिन कथित हेतु से बाह्य कहीं, आचार समाधि नहीं पालें।। अन्वयार्थ-आयारसमाही = आचार-समाधि । खलु = निश्चय । चउव्विहा = चार प्रकार की। भवइ तं जहा = होती है जैसे कि । इहलोगट्ठयाए = इस लोक के सुख हेतु । नो आयारमहिट्ठिज्जा = आचार पालन नहीं करे । परलोगट्ठयाए = परलोक की दिव्य सम्पदा के लिये भी। नो आयारमहिट्ठिज्जा = आचार पालन नहीं करे। कित्तिवण्ण सहसिलोगट्टयाए = कीर्ति, वर्ण, शब्द और श्लोक हेत भी। नो आयारमहिट्ठिज्जा = आचार-पालन नहीं करे । अण्णत्थ आरहंतेहिं हेऊहिं = जिनदेव कथित हेतुओं के अतिरिक्त । न आयारमहिट्ठिज्जा = अन्य किसी हेतु के लिये आचार का पालन नहीं करे। चउत्थं पयं भवइ = यह अन्तिम चौथा पद है। इत्थ सिलोगोय भवड़ = इस प्रसंग का भाव एक श्लोक से इस प्रकार कहते हैं। भावार्थ-मुमुक्षु साधक के व्रत-नियमादि आचरण लौकिक सुख या यश कीर्ति की कामना से नहीं होते । इन्द्रिय-सुख और भोग के मनहर साधनों को तो वह नश्वर-क्षणस्थायी मानकर पहले से ही त्याग चुका है, इसलिये उसके आचरण शास्त्रानुमोदित संवर-निर्जरा द्वारा आत्म शुद्धि के लिये ही होते हैं । उसका लक्ष्य होता है कि-1. इस लोक के निमित्त आचार का पालन नहीं करना चाहिये। 2. परलोक के निमित्त आचार का पालन नहीं करना चाहिये। 3. कीर्ति, वर्ण, शब्द और श्लाघा के निमित्त आचार का पालन नहीं करना चाहिये। जिनेन्द्र कथित हेतु के अतिरिक्त अन्य किसी भी उद्देश्य से आचार का पालन नहीं करना चाहिये। यह चतुर्थ पद है। यहाँ पर एक श्लोक भी है जिणवयणरए अतिंतिणे, पडिपुण्णाययमाययट्ठिए। आयारसमाहि-संवुडे, भवइ य दंते भावसंधए ।।5।। हिन्दी पद्यानुवाद जिनवाणी रत ना तितिन भाषी. अत्यन्त मोक्ष का अभिलाषी। आचार समाधि से संवृत्त जो, होता है दान्त विनय-भाषी ।।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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