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________________ [271 नौवाँ अध्ययन] भावार्थ-इस गाथा के भाव अन्वयार्थ में ही स्पष्ट है। पेहेइ हियाणुसासणं, सुस्सूसइ तं च पुणो अहिट्ठए। __ण य माणमएण मज्जइ, विणयसमाहि आययट्ठिए ।।2।। हिन्दी पद्यानुवाद विनय समाधि में मोक्षार्थी, हित-वचन-श्रवण इच्छा करता। शुश्रूषा, आचार शुद्धि, मद-मान मध्य में ना बहता ।। अन्वयार्थ-आययट्ठिए = मोक्षार्थी मुनि । विणयसमाहि = विनय समाधि में । हियाणुसासणं = हितकारी अनुशासन की। पेहेइ = इच्छा करता है । च = और । तं = उसका । सुस्सूसइ = श्रवण करता है। पुणो = फिर । अहिट्ठए = आज्ञा पालन करता है । य = और । ण माणमएण मज्जइ = ज्ञान के मद से उन्मत्त नहीं होता है। भावार्थ-ज्ञानार्थी के लिए गाथा में चार बातें आवश्यक बताई गई हैं। जैसे-1. गुरुदेव से हित शिक्षा सुनने की इच्छा करना, 2. प्रेम से उसे श्रवण कर ग्रहण करना, 3. फिर उस पर आचरण करना और 4. ज्ञान के मद से उन्मत्त नहीं होना । इन चार कारणों से विनय समाधि को धारण करना होता है। जो इस प्रकार से इसे धारण करता है उसका ज्ञान वर्द्धमान रहता है, वृद्धिंगत होता रहता है। चउव्विहा खलु सुयसमाही भवइ । तं जहा1. सुयं मे भविस्सइत्ति अज्झाइयव्वं भवइ। 2. एगग्गचित्तो भविस्सामि त्ति अज्झाइयव्वं भवइ। 3. अप्पाणं ठावइस्सामि त्ति अज्झाइयव्वं भवइ । 4. ठिओ परं ठावइस्सामि त्ति अज्झाइयव्वं भवइ । चउत्थं पयं भवइ । भवइ य इत्थ सिलोगो। हिन्दी पद्यानुवाद श्रुत-समाधि के चार भेद, वे इस प्रकार होते जैसे । होंगे शास्त्र प्राप्त हमको. इसलिए पाठय वे हैं हमसे ।। पर को भी दृढ़ कर दूंगा, मैं संयम पथ में दृढ़ रहकर । अतएव अध्ययन करना है, स्वाध्याय यज्ञ में रत रहकर ।। अन्वयार्थ-खलु = निश्चयकर । सुयसमाही = श्रुत समाधि । चउव्विहा = चार प्रकार की।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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