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________________ 200] [दशवैकालिक सूत्र हिन्दी पद्यानुवाद गृहदारी को ना धीर प्राज्ञ, मुनि बोले बैठो या आओ। __ खड़ा रहो कुछ करो और, मरजी है जहाँ चले जाओ।। अन्वयार्थ-तहेव = (खरीद बिक्री के समान) वैसा ही। धीरो = धीर मुनि । असंजय = असंयति गृहस्थ को । आस = बैठो। एहि = आओ। वा = अथवा । करेहि = यह काम करो। सयं = सो जाओ। चिट्ठ = खड़े रहो। वयाहित्ति = चले जाओ। एवं = इस प्रकार । पण्णवं = बुद्धिमान् । न = नहीं। भासिज्ज (भासेज्ज) = बोले। ___ भावार्थ-संयमी साधु गृहस्थ को संसार की प्रवृत्ति के सम्बन्ध में आओ, बैठो, यह काम करो, सो जाओ, खड़े रहो, चले जाओ, खाओ, पीओ आदि नहीं कहे । असंयमी को आने, जाने आदि का कहना, असंयमी द्वारा होने वाले गमनागमन के आरम्भ में निमित्त बनता है, अत: साधु को खास आवश्यकता से कुछ कहना हो तो यहाँ ठहरने का अभी अवसर नहीं है, जाने के लिये अभी आप उधर अवसर देख लें या दया पाल लें, संतों को आहार करना है, ऐसी निरवद्य भाषा बोले । बहवे इमे असाहू, लोए वुच्चंति साहुणो। न लवे असाहुं साहुत्ति, साहुं साहुत्ति आलवे ।।48।। हिन्दी पद्यानुवाद जग में बहुत असाधु वेष, धारण कर साधु कहाते हैं। असाधु को ना साधु कहे, साधु ही साधु कहाते हैं।। अन्वयार्थ-लोए = लोक में । इमे = ये । बहवे = बहुत से । असाहू = असाधु भी । साहुणो = साधु नाम से । वुच्चंति = कहे जाते हैं, किन्तु बुद्धिमान् । असाहुं = असाधु को । साहुत्ति = साधु है ऐसा । न लवे = नहीं कहे । साहुं = गुण सम्पन्न साधु को ही। साहुत्ति = साधु नाम से । आलवे = कथन करे। भावार्थ-संसार में बहुत से वेषधारी असाधु होकर भी भक्तों के द्वारा रागवश साधु कहे जाते हैं। इसलिये बुद्धिमान् को चाहिये कि असाधु को साधु न कहे । गुणों से सम्पन्न साधु का ही साधु रूप से कथन करे। नाणदंसणसंपन्नं, संजमे य तवे रयं । एवं गुणसमाउत्तं, संजय साहुमालवे ।।49।। हिन्दी पद्यानुवाद सम्पन्न ज्ञान दर्शन से जो, संयम और तप में लीन सदा। इन गुणों से युक्त तपस्वी को, उपयुक्त कथन है साधु सदा ।।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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